रविवार, 8 अक्तूबर 2017

प्याज


वैज्ञानिक नाम (Botanical name):-             एलियम सीपा (Alium cepa)
कुल (Family) :-                                        एलिएसी (Alliaceae)
गुणसूत्र संख्या (Chromosome number):-  2n = 14

प्याज:-
प्याज एक उपयोगी सब्जी हैं। इसे विभिन्न पकवान, मसाले और औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता हैं। प्याज रबी की मुख्य फसल हैं। लेकिन इसे अब खरीफ में भी उगाया जाने लगा हैं। प्याज मुख्यत: बीज द्वारा उगायी जाती हैं। प्याज भारत के सभी प्रान्तों में उगायी जाती हैं। विश्व में भारत का प्याज का क्षेत्रफल एवं उत्पादन की द्रष्टि से दूसरा स्थान हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा एवं हरियाणा आदि राज्यों में उगायी जाती हैं।
  • प्याज में चरपराहट एक वाष्पशील तेल एलाइल डाईसल्फाईड के कारण होती हैं।
उत्पत्ति:-
प्याज की उत्पत्ति उत्तर पश्चिम भारत, अफगानिस्तान, उजबेकिस्तान व पश्चिमी ताइवान क्षेत्र में मानी जाती हैं

जलवायु:-
प्याज ठंडे मौसम की फसल हैं। इसकी पैदावार पर दिन की लम्बाई व स्थान का बहुत असर पड़ता हैं। भारत में उगायी जाने वाली किस्म के लिए उच्च तापमान व लम्बी प्रकाश अवधि की आवश्यकता पड़ती हैं। जबकी बल्ब के विकास के लिये 15.5 डिग्री से 21 डिग्री से० तापमान तथा 10 घंटे प्रतिदिन प्रकाश अवधि की आवश्यकता पड़ती हैं। लगभग 70 प्रतिशत आद्रता फसल के लिए जरूरी हैं। तापमान के बढ़ जाने से रबी की फसल पक जाती हैं। जिससे बल्ब छोटे रेह जाते हैं।

भूमि:-
प्याज प्राय: सभी प्रकार की भूमि में उगायी जा सकती हैं। जिसमें ह्यूमस (कार्बनिक पदार्थ) की मात्रा अधिक, उर्वरा शक्ति व जल निकास की व्यवस्था अच्छी हो। अधिक अम्लीय भूमि का प्याज पर बुरा असर पड़ता हैं। प्याज की खेती के लिए भूमि का पी०एच० मान 5.8 से 6.5 उपयुक्त रहता हैं।

खेत की तैयारी:-
प्याज की रोपाई करने से पहले खेत को आवश्यकतानुसार दो से तीन जुताई करके भूमि को भुरभुरी बना लिया जाता हैं, उसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लिया जाता हैं

बुवाई का समय:-
  • खरीफ- गटिठयों  की बुवाई फरवरी में की जाती हैं। क्यारी में बीज की बुवाई जून में की जाती हैं और रोपाई अगस्त के प्रथम सप्ताह में की जाती हैं। खरीफ में उत्पादन 200-250 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता हैं। खरीफ की एग्रीफाउन्ड डार्क रेड, बसवन्त-780, एन-53 आदि प्रमुख किस्म हैं।
  • रबी- बीज की बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक की जाती हैं। पौधे की रोपाई का कार्य बुवाई के 7-8 सप्ताह बाद किया जाता हैं। रबी में उत्पादन 300-350 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता हैं। रबी की एग्रीफाउन्ड लाइट रेड, कल्यानपुर रेड, पूसा रेड, नासिक रेड आदि प्रमुख किस्म हैं।
बीज दर:-
प्याज का बीज एक हेक्टेयर में 8-10 किलोग्राम पर्याप्त होता हैं

प्रजातियाँ:-
प्याज की प्रजातियाँ निम्न हैं- कल्यानपुर लाल,  पूसा लाल, नासिक लाल, नासिक सफ़ेद, पटना लाल, पटना सफ़ेद, पंजाब सलैक्स्न, हिसार-1 फैन्जीरा, धूलिया, बेलारी, उदयपुर-101, उदयपुर-102 और उदयपुर -103 आदि अच्छी किस्म हैं।

खाद एवं उर्वरक:-
प्याज की अच्छी फसल के लिए अन्तिम जुताई से पहले सड़ी हुई गोबर की खाद 200-250 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाना चाहिये। रोपाई के समय नाइट्रोजन 75 किग्रा०, फास्फोरस 60 किग्रा० और पोटाश 60 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिये। खड़ी फसल में नाइट्रोजन 60 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से दो बार देनी चाहिये। पहली आधी मात्रा रोपाई के एक माह बाद तथा शेष मात्रा दो से ढाई माह पर बुरकाव द्वारा देनी चाहिये। बुरकाव के बाद सिंचाई कर देनी चाहिये।

पौध तैयार करना:-
बीज को ऊंची उठी हुई समतल क्यारी में भी बोया जा सकता हैं। क्यारी की चौड़ाई 0.60 मीटरलम्बाई सुविधानुसार रखते हैं। 4 सप्ताह तक सिंचाई फव्वारे से करे। एक हेक्टेयर भूमि में प्याज लगाने के लिए 1/20 से 1/10 हेक्टेयर भूमि में पौधशाला की क्यारी तैयार की जाती हैं। क्यारी तैयार करते समय मिट्टी को बहुत महीन बना लेना चाहिये जिससे भूमि में नमी बनी रहे और अंकुरण के लिए उपयुक्त तापमान मिल सके। क्यारी  में बीज अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में बोना चाहिये। बीज को बोकर उसके ऊपर पुराल या कांस की टट्टी बिछा देनी चाहिये। अंकुरण 7-8 दिन में होने लगता हैं। अंकुरण होने पर क्यारी पर से पुराल व कांस की टट्टी को हटा देना चाहिये।

पौध की रोपाई:-
जब पौधे 7-8 सप्ताह के हो जाए तब इन्हें पौधशाला से उखाड़कर चोटी की पत्तियों का एक चौथाई भाग काट देना चाहिये। उसके बाद रोपाई कर देनी चाहियेपौधे की रोपाई मध्य नवम्बर में कर सकते हैं। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 15 सेमी०,पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी० तथा गहराई 2 सेमी० तक होनी चाहिये। रोपाई के समय खेत में नमी होनी चाहिये।

सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई:-
पहली सिंचाई रोपाई के 3-4 दिन बाद करनी चाहियेउसके बाद सर्दी में सिंचाई लगभग 10-15 दिन के अन्तर पर व गर्मी में प्रति सप्ताह की आवश्यकता होती हैं। रेतीली भूमि में गर्मी में हर तीसरे दिन सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। कन्द के पकने के समय सिंचाई कम कर देनी चाहिये। कन्द की खुदाई के 2-3 सप्ताह पूर्व हल्की सिंचाई करनी चाहिये। प्रत्येक सिंचाई के बाद निराई और हल्की गुड़ाई करनी चाहिये। खाद डालने से पहले तथा यूरिया डालने के बाद सिंचाई करना अच्छा रहता हैं।

कीट:-
प्याज की थ्रिप्स:- यह पीले रंग  का छोटा कीड़ा होता हैं। जो पत्ती पर सफ़ेद धब्बा पैदा करता हैं। जिससे पत्ती का ऊपरी सिरा भूरे रंग में बदल जाता हैं। बाद में पत्ती झड़ जाती हैं
रोकथाम:- डाइमेक्रान 100 प्रतिशत ई०सी० 200-250 मिली० मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर 1-2 बार छिड़काव करना चाहिये। इन्ड्रीन 0.01 प्रतिशत का घोल बनाकर बार-बार छिड़काव करे।
ओनीयन मैगेट:- यह मक्खियों की तरह मक्खी से छोटा कीट होता हैं
रोकथाम:- मैलाथियान 50 प्रतिशत ई० सी० 0.1 प्रातिशत का घोल बनाकर छिड़काव करे

रोग:-
डाउनी मिल्ड्रयू:- यह रोग फफूंद के कारण फैलता हैं। इस रोग में पत्ती के ऊपर सफ़ेद रंग का पाउडर दिखाई देता हैं। बाद में पत्ती सूख जाती हैं।
रोकथाम:- मैन्कोज़ेब 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर रोपाई के 20 दिन बाद करना चाहिये। इसके बाद 10-15 दिन के अन्तराल पर करते रहना चाहिये।
बैंगनी धब्बा रोग:- इस रोग में शुरू में पत्ती पर पीले से सफ़ेद धब्बे लगते हैं। जिसके बिच का भाग बैंगनी रंग का होता हैं। यह रोग तेज़ी से फैलता हैं। पत्तियों से फैलकर बिच के स्तंभों में पहुँच जाता हैं और प्याज गलने लगती हैं।
रोकथाम:- मैन्कोज़ेब 75 प्रतिशत डबल्यू०पी० 0.2 प्रतिशत, कॉपर ऑक्सी-क्लोराइड 50 प्रतिशत डबल्यू०पी० 0.25 प्रतिशत या क्लोरोथानोमिल 50 प्रतिशत डबल्यू०पी० 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करे।

 खुदाई:-
प्याज की किस्म, बुवाई का समय व उपयोगिता के अनुसार प्याज की खुदाई का समय भी अलग होता हैं। प्याज खाने योग्य होने पर हाथ से उखाड़ा जाता हैंशल्ककन्द की फसल रोपाई के 3-4 माह बाद खुदाई के लिये तैयार हो जाती हैं प्याज की परिपक्वता की पहचान ऊपरी भाग को देखकर की जाती हैंजब ऊपर की लगभग 70 प्रतिशत शाखाएँ सूख जाती हैं तो प्याज की खुदाई कर लेनी चाहिये

उपज:-
प्याज के कन्द की उपज 250-300 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती हैं

प्याज में बोल्टिंग:-

प्याज के पौधे में समय से पहले ही पुष्प डण्डी का निकाल जाना बोल्टिंग कहलाता हैं। जिसके कारण बल्ब विकसित नही हो पाते हैं। परिणामस्वरूप पैदावार प्राप्त नही होती हैं। बोल्टिंग का मुख्य कारण भूमि में नाइट्रोजन की कमी का होने तथा अधिक पुरानी पौध की रोपाई करना हैं। तापमान के कम-अधिक होने से भी बोल्टिंग हो जाती हैं। इससे बचने के लिये नाइट्रोजन का समय पर प्रयोग करना चाहिये। अधिक पुरानी पौध की रोपाई नही करनी चाहिये। संस्तुत प्रजाति की समय से बुवाई व रोपाई करनी चाहिये।

भण्ड़ारण:-
प्याज के भण्ड़ारण के लिये रोशनी और हवादार स्थान उपयुक्त हैं भण्ड़ारण में रखे प्याज को 15 दिन के अन्तर पर पलटते रहना चाहिये तथा क्षतिग्रस्त व अंकुरित कन्दों को निकाल देना चाहिये।।

final

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