सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

मिर्च

मिर्च  (Chillie)
 
वैज्ञानिक नाम (Botanical name):-             केपसीकम एनम (Capsicum annuum L.)
कुल (Family) :-                                       सोलेनेसी (Solanaceae)
गुणसूत्र संख्या (Chromosome number):-   2n = 24,36,48
 
मिर्च:-
भारत में मिर्च 8.26 लाख हेक्टेयर भूमि में उगाया जाता हैं तथा 5.11 लाख टन सूखी मिर्च का उत्पादन होता हैं। उत्तर प्रदेश में कुल 20100 हेक्टेयर भूमि में खेती होती हैं। मिर्च का उपयोग सब्जियों और चटनियों में इस्तेमाल होने वाले प्रमुख मसाले के रूप में किया जाता हैं।
  • मिर्च में तीखापन या तेजी ओलियोरेसिन कैप्सिन नामक एक उड़नशील एल्केलाईड के कारण तथा उगता कैप्साइसीन नामक एक रवेदार उग्र पदार्थ के कारण होती हैं। बड़ी तथा छोटी 'मीठी' मिर्च एस्कार्षिक अम्ल की घवी होती हैं।
उत्पत्ति:-
 
जलवायु:-
मिर्च गर्म और आद्र जलवायु में भली-भाँती उगायी जा सकती हैं, परन्तु इसके फलों को पकते समय शुष्क मौसम का होना भी जरूरी होता हैं। बीज का अच्छा अंकुरण 18-30 डिग्री से० पर होता हैं। मिर्च को समुद्रतल से 2000 मीटर की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता हैं। 15 डिग्री से० से कम और 33 डिग्री० से अधिक तापमान बड़ी मिर्च के फलों को बनने रोक देता हैं। तेज मिर्च अपेक्षाकृत अधिक गर्मी सह लेती हैं। उच्च तीव्रता वाला प्रकाश पैदावार को बढ़ाता हैं, परन्तु मिर्च में कैप्सिसिन की मात्रा को घटाता हैं तथा फलों के रंग विकास में भी पर्याप्त देरी कर देता हैं।
 
भूमि:-
मिर्च की खेती के लिये अच्छे जल निकास वाली जीवांशयुक्त दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती हैं। मिट्टी का पी० एच० मान 6.5 से 8 उपयुक्त रहता हैं। लेकिन जहाँ पर फसलकाल छोटा होता हैं वहाँ पर बलुई तथा दोमट मिट्टी को प्राथमिकता दी जाती हैं। मिर्च की खेती के लिये अम्लीय मिट्टी अनुयपयुक्त होती हैं।
 
भूमि की तैयारी:-
खेत में सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करनी चाहिये। उसके बाद भूमि में गोबर की सड़ी खाद ड़ालकर हैरों या देशी हल से 3-4  जुताई करके, पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिये। ताकि अन्य जुताई के बाद गोबर की खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाये । जिससे सिंचाई करते समय कठिनाई ना हो।
 
बोने का समय :-
  • जाड़ों की फसल:- इस वर्ग में मैदानी तथा दक्षिण क्षेत्रों में मिर्च की खेती की जाती हैं। इसकी बुवाई जून से जुलाई में तथा रोपाई अगस्त से सितम्बर में की जाती हैं।
  • गर्मी की फसल:- इसकी बुवाई नवम्बर में तथा रोपाई जनवरी में की जाती हैं।
  • बरसाती फसल और पहाड़ी क्षेत्र:- इसकी बुवाई मार्च से अप्रैल में तथा रोपाई अप्रैल से मई में की जाती हैं।
  • पाला पड़ने वाला क्षेत्र:- इसकी बुवाई अप्रैल से मई तथा रोपाई मई से जून में की जाती हैं।
बीज दर:-
मिर्च का बीज 600-700 ग्राम प्रति एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त  होता हैं।
 
प्रजातियां:-
मिर्च की पन्त सी-1, एन० पी० 46-ए , चंचल, पूसा ज्वाला, के०-5452, बी० सी०-1, पी० सी०-2, जवाहर-218, पूरी रैड, फजलिका-6, फजलिका-7, अबोहर-7, अबोहर-12 आदि प्रमुख किस्म हैं।
 
बीज एवं भूमि उपचार:-
बीज को बोने से पहले भूमि और बीज दोनों को उपचारित करना आवश्यक होता होता हैं। बीज को उपचारित करने के लिये थीरम 2  ग्राम प्रति 1 किलोग्राम या कॉपर सल्फेट के घोल में 8-10 मिनट तक उपचारित करना चाहिए। तथा भूमि शोधन के लिये एल्ड्रिन 5 प्रतिशत धूल 20 -25  किग्रा ० प्रति एक हेक्टेयर के लिये प्रयोग किया जाता हैं।
 
नर्सरी तैयार करना:-
मिर्च की अच्छी पैदावार लेने के लिये पहले मिर्च को नर्सरी में बोते हैं। पौध तैयार करने के लिये भूमि से 15-20 सेमी० ऊँची उठी तथा एक मीटर चौड़ी तथा लम्बाई आवश्यकतानुसार की एक क्यारी तैयार की जाती हैं। दो क्यारी के बीच 50 सेमी० गहरी और 8-10 सेमी०  चौड़ी नाली बनाते हैं, जिससे नर्सरी को आसानी से सिंचित किया जा सके और फालतू पानी को बहार निकाल सके। नर्सरी में गोबर की सड़ी हुई खाद 1-15 किग्रा० प्रति एक वर्ग फीट की दर से अच्छी तरह मिलाते  हैं। नर्सरी में बीज लाइन में बोना चाहिये। लाइन से  लाइन की दूरी 5 सेमी० तथा गहराई 1-2 सेमी० होनी चाहिये। नर्सरी को एक सप्ताह तक भूसे या सूखी घास से ढक देते हैं। एक सप्ताह तक सुबह-शाम दिन में दो बार नर्सरी को पानी से भिगोते हैं।
  • डैम्पिंग ऑफ रोग से बचाने के लिये 1 प्रतिशत बोर्डों मिश्रण का 12-15 के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिये।
  • कीट के प्रकोप से बचाने के लिये 2 मिली० प्रति एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।
पौध रोपण:-
पौध की रोपाई शाम के समय करनी चाहिये। पौध जब 4-6 सप्ताह की हो जाये तब रोपाई करनी चाहिये। रोपाई के तुरन्त बाद खेत में हल्का पानी देना। पौध को नाइट्रोजन यूरिया के घोल से दी जाये तो पौधे स्वस्थ रहते हैं। खरीफ में पौध की रोपाई करते समय लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी० और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेमी० तथा जायद में लाइन से लाइन की दूरी 45 सेमी० और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी० होनी चाहिये।
 
खाद एवं उर्वरक:-
खेत की तैयारी करते समय अन्तिम जुताई से पूर्व गोबर की सड़ी हुई खाद 200-300 कुन्तल प्रति एक हेक्टेयर की दर फैलाकर भूमि में अच्छे से मिलाना चाहिये। इसके अलावा रोपण के समय नाइट्रोजन  किग्रा०, फॉस्फोरस  किग्रा० और पोटाश  किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिये। नाइट्रोजन की आधी  मात्रा रोपण के समय और शेष मात्रा रोपण के बाद
 
सिंचाई:-
पहली सिंचाई रोपाई के तुरन्त बाद करनी चाहिये। इसके बाद 8-10 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई।
 
निराई-गुड़ाई:-
सामान्यत: मिर्च में पहली निराई-गुड़ाई 20-25 और दूसरी निराई-गुड़ाई  35-40 दिन बाद करनी चाहिये। खेत में निराई-गुड़ाई का कार्य हाथ से खुरपे द्वारा, डोरा या कोलपा द्वारा करनी चाहिये।
 
खरपतवार नियन्त्रण:-
 खरपतवार नियन्त्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिये।
 
कीट:-
थ्रिप्स :- यह कीट पत्ती का रस चूसकर हानि पहुँचाता हैं। मार्च से नवम्बर तक इस कीट का प्रकोप अधिक होता हैं।
रोकथाम:- इस कीट से नियन्त्रण के लिये मैलाथियान 50 प्रतिशत ई० सी० 0.05 प्रतिशत या मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 20-25 किग्रा० प्रति एक हेक्टेयर की दर से बुरकना चाहिये।
फुदका कीट:- यह कीट पत्ती तथा मुलायम शाखा का रस चूसकर हानि पहुँचाता हैं। इस कीट का प्रकोप मार्च से अक्टूबर तक अधिक होता हैं।
रोकथाम:- इस कीट से नियन्त्रण के लिये फॉस्फोमिडान 0.03 प्रतिशत, मैलाथियान 50 प्रतिशत ई० सी० 0.05 प्रतिशत या एण्डोसल्फान 0.04 प्रतिशत का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये।
पिली माइट:- यह कीट पत्ती का रास चूसते हैं और मिर्च में मुर्दा रोग फैलाते हैं। इसका अधिक प्रकोप फरवरी से अगस्त तक अधिक होता हैं।
रोकथाम:- इस कीट से नियन्त्रण के लिये मैटासिस्टाक्स 0.03 प्रतिशत, मोरोसाइड 0.04 या फोसालोन 0.05 प्रतिशत को पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।
 
रोग:-
फल गलन:- यह रोग कॉलेस्ट्रोटरीक हम कैप्सिस नामक फफूँदी के कारण होता हैं। इससे फलों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और फलों का रंग उड़ जाता हैं।
रोकथाम:- इस रोग से नियन्त्रण के लिये बीज को एग्रोसन जी० एन० से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिये।
मोजेक:- इस रोग से पौधों की बढ़वार रुक जाती हैं। पत्ते मोटे व् मुड़ जाते हैं। पौधा झाड़ीनुमा हो जाता हैं। पत्ती पिली पड़ जाती हैं।
रोकथाम:- इस रोग से नियन्त्रण के लिये मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 1.0 प्रतिशत का पानी में घोल बनाकर 10-15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिये। रोगी पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिये। रोग प्रतिरोधी किस्म की बुवाई करनी चाहिये।
आद्र गलन:- यह रोग पिथियम स्पीसीज या फाइटोफथोरा स्पीसीज नामक फफूँदी के कारण होता हैं। इस रोग से पौधे छोटे ही  हैं।
रोकथाम:- इस रोग से नियन्त्रण के लिये डाईथेन एम-45 का 0.03 प्रतिशत का पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाता हैं।
 
फलियों की तुड़ाई:-
मिर्च की फलियाँ जब पककर लाल हो जायें तब इनकी तुड़ाई करनी चाहिये। आमतौर से फलियाँ दिसम्बर से जनवरी में पकती हैं।
 
उपज:-
ताजी मिर्च की पैदावार 40-60 कुन्तल तथा सूखी मिर्च 10-15 प्रति एक हेक्टेयर प्राप्त होती हैं।
 
भण्डारण:-
हरी मिर्च के फलों को 7-10 डिग्री से० तापमान तथा 90-95 प्रतिशत आद्रता पर 14-21 दिन तक भण्डारित किया जा सकता हैं। लाल मिर्च को 3-10 दिन तक सूर्य की तेज धुप में सुखाकर 10 प्रतिशत नमी पर भण्डारण करना चाहिये।
 
बीज उत्पादन:-
यह स्वपरागित फल हैं फिर भी परपरागण की बहुत सम्भावना रहती हैं। दो किस्मों बीच लगभग 400 मीटर की दूरी रखते हैं। बीज उत्पादन के लिये अच्छे स्वस्थ एवं पूर्ण विकसित फलों को चुना जाता हैं। पूरी पकने पर ही फल को तोड़ा जाता हैं। शिमला मिर्च में  पूरा रंग लेकर सिकुड़ने लगे, बीज के लिये तभी तोड़ना चाहियें। बीज की औसत उपज 50-80 किग्रा० प्रति एक हेक्टेयर प्राप्त होती हैं। यह उपज विभिन्न किस्मों में अलग-अलग मात्रा में पायी जाती हैं।

फाइनल 

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