मंगलवार, 17 अक्तूबर 2017

भिण्डी (Okra)

भिण्डी (Okra)
 
वैज्ञानिक नाम (Botanical name):-             एबेलमोलकस एस्कुलेंटस (Abelmoschus esculentus)
कुल (Family) :-                                        मालवेसी (Malvaceae)
गुणसूत्र संख्या (Chromosome number):-  2n = 22

भिण्डी:-
भिण्डी के हरे मुलायम फल का प्रयोग सब्जी, सूप फ्राई तथा अन्य रूप में किया जाता हैं। आजकल भिण्डी की कैनिंग और फ्रिजिंग भी की जा रही हैं। पौधे का तना व जड़ गुड एवं खोंड बनाते समय रस साफ करने के काम आता हैं। इसके रेशे से रस्सी बन सकती हैं तथा डंठलों को कागज बनाने के काम में प्रयोग किया जाता हैं।

उत्पत्ति:-
भिण्डी का उत्पत्ति स्थान दक्षिणी अफ्रीका अथवा एशिया माना जाता हैं (थॉमसन एवं कैली)। अफ्रीका में इसकी खेती अमेरिका खोज के बहुत पहले से होती आ रही हैं। यह भारतीय भी हो सकती हैं क्योंकि यहाँ यह जंगली रूप में उगती हुई पायी जाती हैं।

जलवायु:-
भिण्डी गर्म मौसम की फसल होने के कारण लम्बे एवं गर्म मौसम को चाहती हैं। भिण्डी कोमल होने के कारण पाला के प्रति असहनशील होती हैं। भिण्डी के बीज 20 डिग्री से० से कम तापमान पर अंकुरण नही कर पाता हैं।

भूमि:-
 भिण्डी सभी प्रकार की भूमि में उगायी जा सकती हैं। लेकिन अच्छी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली भुरभुरी एवं कार्बनिक पदार्थयुक्त दोमट भूमि उपयुक्त होती हैं। भिण्डी की खेती के लिए उचित पी०एच० मान 6-6.8 होता हैं।

भूमि की तैयारी:-
खेत में सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से 20-25 सेमी० गहरी जुताई करनी चाहिये। उसके बाद हैरों या देशी हल से 2-3 जुताई करके मिट्टी भुरभुरी कर लेनी चाहिये। फिर पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेता हैं जिससे सिंचाई करते समय कठिनाई ना हो।

खाद एवं उर्वरक:-
बुवाई के 15-20 दिन पूर्व 200-250 कुंतल प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी हुई खाद खेत में फैलाकर मिला देना चाहिये। इसके अलावा नाइट्रोजन 60 किग्रा०, 50 किग्रा० फास्फोरस और 60 किग्रा० पोटाश प्रति एक हेक्टेयर की दर से देना चाहिये। खरीफ में नाइट्रोजन की मात्रा 70 किग्रा० कर देनी चाहिये। शेष नाइट्रोजन की मात्रा बुवाई के 30 दिन बाद और दूसरी मात्रा 60 दिन बाद देनी चाहिये।

बीज दर:-
बुवाई के समय के आधार पर बीज दर भी अलग-अलग होती हैं। गर्मी में 18-20 किग्रा० तथा बरसात में 10-15 किग्रा० की दर से बीज बोया जाता हैं। भिण्डी में अंकुरण का प्रतिशतांक बुवाई से 24 घंटे पूर्व पानी में या 30 मिनट पहले एसीटोन या एल्कोहल में भिगोकर बढ़ाया जा सकता हैं।

बुवाई का समय:-
भिण्डी को मैदानी भागों में फरवरी मध्य से मार्च के आरम्भ तक बोया जाता हैं। बरसाती फसल को जून के अन्त से जुलाई के आरम्भ तक बोया जाता हैं। पहाड़ों पर भिण्डी अप्रैल से जुलाई तक बोयी जाती हैं। भिण्डी की फसल को लगातार प्राप्त करने के लिये भिण्डी की बुवाई के मौसम में 10-15 दिन के अन्तराल पर कई बार की जाती हैं।

बुवाई का तरीका:-
बीज की बुवाई लाइन में डिबलिंग द्वारा, सीडड्रील या हल के पीछे करते हैं। इसमें लाइन से लाइन की दूरी 30 सेमी०, पौधे से पौधे की दूरी 20-30 सेमी० और एक स्थान पर दो बीज को डालकर बोया जाता हैं, बाद में अगर दोनों बीज जम जाये तो कमजोर पौधे को निकाल देना चाहिये। बरसात में भिण्डी की बुवाई छोटी-छोटी मेंड़ों पर करनी चाहिये। इसमें लाइन से लाइन की दूरी 45-60 सेमी० तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी० की होनी चाहिये। बीज को लगभग 2.5 सेमी० की गहराई पर बोना चाहिये।
 
प्रजातियाँ:-
  • पूसा मखमली- इसका फल 6-8 इंच लम्बे, सीधे, चिकने और हरे रंग के होते हैं। गर्मी में बुवाई के 50 दिन और वर्षा ऋतु में 60 दिन के बाद फल तोड़ने लायक हो जाते हैं।
  • पूसा सावनी- इसे भारत के सभी भागों में उगाया जा रहा हैं। इसे वर्षा और ग्रीष्म कालीन फसल के रूप में उगाया जा सकता हैं। गर्मी में बुवाई के 40-45 दिन और वर्षा ऋतु में 60-65 दिन के बाद फल तोड़ने लायक हो जाते हैं। इस किस्म पर मोजेक का प्रकोप कम और उपज 100 कुन्तल प्रति एक हेक्टेयर प्राप्त होती हैं।
  • लाल भिन्डी- इसके फल लाल, लम्बे, सीधे, गूदेदार तथा पूसा सावनी से कम बीज वाले होते हैं।
  • आई० एच० आर-31- इसके फल लम्बे(24 सेमी०), मोटे गूदे वाले तथा हल्के हरे रंग के होते हैं। प्रति पौधे फल की औसत संख्या 20-25 तथा उपज 350-375 कुन्तल प्रति एक हेक्टेयर होती हैं। फल 5 धारियों वाले तथा फुल खिलने के 8-10 दिन बाद फल तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। यह किस्म पत्तिशिरा मोजेक विषाणु से मुक्त पायी गयी हैं।
  • पंजाब नं०-13- यह गर्मी के लिए उपयुक्त हैं। बुवाई के 50 दिन बाद पहली तुड़ाई शुरू हो जाती हैं। फल मुलायम, हल्के हरे रंग के और उपज 75-80 कुन्तल प्रति एक हेक्टेयर प्राप्त होती हैं।
  • अन्य प्रजातियाँ- पकिन्स लौंग ग्रीन, सलैक्शन-1, सलैक्शन-2, पंजाब पदमिनी, प्रभनी क्रान्ति, वर्षा उपहार, हिसार उन्नत, पूसा-ए-4, आजाद क्रान्ति व लखनऊ ड्वार्फ अच्छी किस्में हैं।

खरपतवार नियंत्रण:-
भिन्डी की फसल में मौसमी खरपतवार की समस्या बनी रहती हैं जिससे फसल को बहुत हानि होती हैं। इसलिये खरपतवार को नष्ट करना जरूरी होता हैं। भिन्डी का खेत यदि बुवाई के बाद प्रथम 30-40 दिन तक खरपतवार रहित रह जाये तो इसके बाद खरपतवार फसल पर विशेष कुप्रभाव नहीं डालते हैं। एलाक्लोर 2.5 किग्रा० या पेन्डीमेथीलीन 1.5 किग्रा० प्रति एक हेक्टेयर का छिडकाव करना चाहिये।
 
निराई-गुड़ाई:-
 शुरुआत से ही खरपतवार को नष्ट करने के लिए निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिये। घने पौधे रहने पर अतिरिक्त पौधे निकाल देने चाहिये। जिससे फसल वाले पौधे की बढ़वार ठीक हो सके।

सिंचाई:-
बुवाई हमेशा पलेवा करके करनी चाहिये। ताकि बीज का जमाव अच्छा हो सके। गर्मी में प्रति सप्ताह सिंचाई की जरूरत होती हैं। देर से सिंचाई करने पर फल जल्दी सख्त हो जाते हैं तथा फल की बढ़वार कम होती हैं। वर्षा ऋतु में यदि लम्बे समय तक वर्षा ना हो तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिये।

कीट:-
जैसिड या हरा फुदका:- यह हरे रंग के कीट होते हैं। जिनकी पीठ के पिछले भाग पर काले धब्बे पाये जाते हैं। इसके शिशु व् प्रोढ़ कीट दोनों पत्ती व् नर्म भागों से रस चूसते हैं। जिससे पत्ती मुड़कर धीरे-धीरे सूख जाती हैं।
रोकथाम:- मैलाथियान 0.04 प्रतिशत या एल्ड्रिन 0.02 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये।
 
रोग:-
येलो मोज़ेक:- यह सबसे हानिकारक वाइरस रोग हैं। जहाँ पर भी भिन्डी उगाई जाती हैं वहाँ पर यह फसल नष्ट कर देता हैं। इस वाइरस का संचरण बेमिसिया टेबेकई नामक सफ़ेद मक्खियों द्वारा होता हैं। रोगग्रस्त पौधे की पत्ती की शिरायें चमकीली व् पिली रंग की हो जाती हैं। रोगी पौधे में फल छोटे, हल्का रंग व् विकृत हो जाते हैं। उत्तरी भारत में यह रोग वर्षा ऋतु में अधिक होता हैं। रोगी पौधों को निरोग करना सम्भव नहीं हैं।
रोकथाम:- रोगग्रस्त पौधे को जलाकर नष्ट कर देना चाहिये। खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिये। सफ़ेद मक्खी पर नियंत्रण करके प्रकोप को कम किया जा सकता हैं। डाईमेक्रान 100 ई०सी० 1 मिलि० प्रति 3 पानी या नुवान 100 ई०सी० 1 मिलि० प्रति 3 पानी छिडकाव करे। बोने के 25 दिन बाद और अन्य छिड़काव् 15-20 दिन के अन्तर पर करना चाहिये।
तना एवं फल छेदक कीट:- इस कीट की सुन्डी का रंग सफ़ेद होता हैं जिसके ऊपर काले और भूरे रंग के धब्बे होते हैं। इसलिये इसे चित्तीदार सुण्डी कहते हैं। यह तने व् फल में छेद करके नुकसान पहुँचाती हैं। जिससे तना व फल मुरझा कर गिर जाते हैं।
रोकथाम:- क्विनालफास 25 प्रतिशत ई० सी० या क्लोरोपाईरीफ़ॉस 20 प्रतिशत ई० सी० 0.05 प्रतिशत का पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करते हैं।
 
तुड़ाई:-
भिण्डी में बुवाई के लगभग दो माह बाद पौधों में फूल और फल लगने लगते हैं। फलियों की तुड़ाई फूल खिलने के स6-7 दिन के बाद की जाती हैं। केवल उन्ही फलों को तोड़ना चाहिये जो नरम हो और जिनके सिरे थोडा से मोड़ने पर टूट जाये। साधारणत: हर 3-4 दिन के अन्तर पर फल तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।

उपज:-
जायद में 50-60 कुंतल तथा खरीफ में 90-100 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती हैं।
 
बिज उत्पादन:-
 अपनी फसल से बीज उत्पादन करने और अच्छा उत्पादन करने के लिए यह जरूरी हैं कि प्रमाणित बीज को ही बोये। इसके लिए निम्न तरीके अपनाये-
  • भूमि- अच्छे जल निकास वाली, उपजाऊ एवं भूमि जनित रोगों से मुक्त होनी चाहिये। उस भूमि में कम से कम पिछले 2 वर्ष से भिन्डी की फसल नहीं बोयी गयी हो, ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिये।
  • दूरी- इस फसल में 4 से 19 प्रतिशत तक पर-परागण होता हैं। इसलिये जिस खेत में बीज उत्पादन के लिये फसल उगानी हो उस खेत के आस-पास 400 मीटर तक भिण्डी या भिण्डी प्रजाति की कोई भी फसल नहीं लगानी चाहिये।
  • भूमि की तैयारी- एक बार हल से गहरी जुताई करके 3-4 बार हैरों चलाये जिससे मिटटी भुरभुरी हो जाये। फिर पाटा चलाकर उसे समतल कर लें।
  • खाद एवं उर्वरक- 25-30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी हुई खाद खेत की तैयारी करते समय जमीन में मिलायें।
  • बीज- प्रभावीकरण संस्था से प्रमाणित किया हुआ बीज ही खरीदे। 10-15 किग्रा० प्रति एक हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता हैं।
  • पौधे और कतारों की दूरी- कतार से कतार की दूरी 60 सेमी० और पौधे से पौधे की दूरी 30-45 सेमी० होनी चाहिये।
  • बोने का तरीका- बुवाई हमेशा कतारों में ही करे। बीज की गहराई 3 सेमी० से अधिक नहीं होनी चाहिये। साथ ही भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिये।
  • निराई-गुड़ाई- खेत से पूरी तरह खरपतवार नियन्त्रण करने के लिए कम से कम 2-3 बार निराई-गुड़ाई करे।
  • रोगिग- पीले मोजेक ग्रसित पौधे दिखाई देते ही उखाड़कर नष्ट कर देने चाहिये। जिस प्रजाति का बीज, बीज उत्पादन के लिए ले रहे हैं यदि उस खेत में दूसरी प्रजाति का पौधा दिखाई दे तो उसको भी उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिये। जिस प्रजाति का बिज उत्पादन करना हैं उस प्रजाति में दूसरी प्रजाति का पौधा हैं या नहीं ये जानने के लिए पौधों की ऊँचाई, पत्तियों पर रोयें तथा फली के आकर में अन्तर के आधार पर आसानी  से पहचान सकते हैं।
  • कटाई और मड़ाई- फलियाँ जब सूखकर कड़ी हो जाये तो उनको पौधों से तोड़कर धूप में 2-3 दिन सुखा लेना चाहिये। फिर मड़ाई करके बीज को निकाल लें। उसके बाद फिर से धूप में तब तक सुखाएँ जब तक की दाँतों से तोड़ने पर उनमें कट की आवाज ना आये। इसके बाद भण्डारण करे।
  • उपज- यदि आपने उपरोक्त सभी तरीके अपनायें हैं तो आप निश्चित ही 12-15 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से बीज प्राप्त कर सकते हैं।

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