टमाटर (Tomata)
वैज्ञानिक नाम (Botanical name):- लाईकोपरसिकोन एस्कुलेंटम (Lycopersicon esculentum mill)
कुल (Family) :- सोलेनेसी (Solanaceae)।
गुणसूत्र संख्या(Chromosome number):- 2n = 24
टमाटर:-
पौष्टिक सब्जियों में टमाटर का महत्वपूर्ण स्थान हैं। इसे विलायती बैंगन भी कहते हैं। पका हुआ टमाटर सब्जी के अतिरिक्त फल की भांति भी प्रयोग किया जा सकता हैं। भाजी के अतिरिक्त टमाटर की चटनी, केचप, सलाद, रस आदि निर्माण करके भविष्य में प्रयोग हेतु सुरक्षित रख सकते हैं। अधिक गूदेदार टमाटर की डिब्बाबंदी भी की जाती हैं।
उत्पत्ती:-
टमाटर की उत्पत्ती उष्ण कटिबंधीय अमेरिका में पेरू व् मैक्सिको क्षेत्र में मानी जाती हैं। मैक्सिको में इसे जिटा टोमेटो कहा जाता हैं जो बाद में टमेटो हो गया। लगभग सोलहवीं शताब्दी में स्पेनवासियों द्वारा इसे यूरोप में लाया गया। फिर यूरोपवासियों द्वारा इसे अमेरिका तथा कनाड़ा में लाया गया। भारत में यह पुर्तगालियों द्वारा लाया गया और पिछले दस दशकों में ही यह सब्जी के रूप में लोकप्रिय हो गया।
जलवायु:-
टमाटर की फसल को अधिक गरमाहट से भरपूर वातावरण अधिक प्रिय हैं। ठण्ड अधिक होने पर फल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं। फलों की अपेक्षा पत्तियाँ अधिक ठण्ड सहन कर लेती हैं। अधिक वर्षा होने पर पौधों में मोजेक रोग का आक्रमण होता हैं।
भूमि:-
टमाटर की फसल को सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता हैं। टमाटर की फसल के लिये उचित जल निकास वाली दोमट मिट्टी सर्वोत्तम हैं। टमाटर की फसल के लिए मृदा का पी० एच० मान 6-7 उपयुक्त होता हैं।
भूमि की तैयारी:-
खेत में सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी चाहिये। उसके बाद हैरों या देशी हल से 2-3 जुताई करके मिट्टी भुरभुरी कर लेनी चाहिये। फिर पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेता हैं जिससे सिंचाई करते समय कठिनाई ना हो।
बोने का समय:-
मैदानी भागों में टमाटर जून के अन्त से लेकर नवम्बर तक बोया जाता हैं। जिन क्षेत्रों में मौसम शीघ्र ठण्डा होने लगता हैं। वहाँ पर सबसे अगेती फसल जून से जुलाई के मध्य तक बोयी जाती हैं। और जहाँ ठण्ड देर से होती हैं उन क्षेत्रों में मध्य जुलाई से मध्य अगस्त तक बोई जा सकती हैं। दूसरी अगेती फसल मध्य अगस्त से मध्य अक्तूबर तथा तीसरी फसल का बिज मध्य अक्तूबर से नवम्बर तक बोया जाता हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में यह मार्च से मई तक बोया जाता हैं। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में टमाटर की मुख्य रूप से दो फसल ली जाती हैं-
- बरसात की फसल:- जून से जुलाई में पौध तैयार करके जुलाई से अगस्त तक पौधा रोपण का कार्य किया जा सकता हैं। फल अक्तूबर से नवम्बर तक तैयार हो जाता हैं।
- सर्दी की फसल:- अक्तूबर में पौध तैयार करके नवम्बर में पौधा रोपण का कार्य की जा सकता हैं। इस समय संकर किस्मों को लगाना लाभदायक होता हैं। फल जनवरी से लेकर अप्रैल तक उपलब्ध होते हैं।
बीज दर:-
टमाटर का बीज 400 से 500 ग्राम और संकर किस्म का बीज 100 से 150 ग्राम प्रति एक हेक्टेयर की दर से लगता हैं। टमाटर का बीज 4 वर्ष तक अंकुरण की क्षमता रखता हैं। 25 ग्राम में लगभग 8000 से 9000 बीज होते हैं। इसका बीज सब सब्जियों से हल्का होता हैं। अच्छा बीज 85-90 प्रतिशत तक अंकुरण करता हैं।
प्रजातियाँ:-
- बरसात की किस्म:-
- सर्दी की फसल:- कल्यानपुर टा०-2, आजाद टा०-2, कल्यानपुर अंगूरलता, पूसा गौरव,
- बौनी किस्म:- पूसा अर्ली ड्वार्फ, रोमा, एच० एस०-102 (पूसा अर्ली ड्वार्फ X एस०-12), एच० एस-101 (सलैक्शन 2-3 X एक विदेशी जाति),
- फैलने वाली किस्म:- सू, पूसा रेड प्लम,
- मध्यम फैलने वाली किस्म:- अर्का सौरभ,
- संकर किस्म:- स्वर्ण वैभव, अविनाश-2, रुपाली,
- अन्य किस्म:- पन्तटमाटर-1, आजाद टा०-3, पंजाब छुआरा, पूसा रूबी, पंजाब केसरी, पूसा शीतल, काशी अमृत, काशी अनुपम, काशी, पूसा आदि मुख्या किस्म हैं।
पौध तैयार करना:-
बीज बोने के लिये 15 सेमी० ऊँची उठी हुई क्यारी, चौड़ाई 1 मीटर और लम्बाई आवश्यकतानुसार होनी चाहिये। बीज बालू, रेत या राख के साथ मिलाकर छिटककर बो दिया जाता हैं या बीज की बुवाई पंक्तिमें भी कर सकते हैं। बीज को 1.5 से 2 सेमी० गहराई पर बोते हैं। बोने के तुरन्त बाद फुव्वारे से पानी देना चाहिये। एक हेक्टेयर भूमि में रोपाई करने के लिए लगभग 150 वर्ग मीटर पौध क्षेत्र पर्याप्त हैं। अंकुरण के समय पौधों की कड़ी धूप व् वर्षा से रक्षा करनी चाहिये। अंकुरण लगभग 20 दिन में दिखाई देना लगता हैं। जब पौधे एक सप्ताह के हो जायें तो उन पर बावस्टीन 2 ग्राम प्रति एक लीटर पानी का घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिये। पौधशाला में पत्तियों पर कभी-कभी कीट का प्रकोप हो जाता हैं उसके लिये मोनोक्रोटोफ़ॉस 2 मिलीग्राम प्रति 1 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिये। सिंचाई आवश्यकतानुसार करनी चाहिये अधिक सिंचाई करने से पौधे शीघ्र बढ़कर कोमल हो जाते हैं जिससे रोपाई के बाद पौधे शीघ्र संभल नहीं पाते हैं। 4-6 सप्ताह के पौधे की रोपाई की जाती हैं।
पौध रोपण:-
पौधों को खेत में हमेशा शाम के समय लगाना चाहिये। जब पौधे 5-6 पत्ती के और ऊँचाई 15-20 सेमी० की हो जाये तब रोपाई करनी चाहिये। रोपण के लिए 60 सेमी० चौड़ी तथा जमीन की सतह से 20 सेमी० ऊँची उठी हुई क्यारी बनानी चाहिये, जिनके दोनों तरफ 20 सेमी० चौड़ी नाली बनाई जाती हैं। बनाई गयी क्यारी में पौधों की रोपाई की जाती हैं। पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी० होनी चाहिये। रोपाई के बाद नाली में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिये जिससे पौधे अच्छी तरह से स्थापित हो जाते हैं। बरसात की फसल की रोपाई ऊँचे थालों या मेंड़ों पर करना बहुत अच्छा रहता हैं।
खाद एवं उर्वरक:-
खेत की तैयारी करते समय गोबर की सड़ी हुई खाद 200 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर फैलाकर भूमि में अच्छे से मिलाना चाहिये। इसके अलावा रोपण के समय नाइट्रोजन 150 किग्रा०, फॉस्फोरस 60 किग्रा० और पोटाश 60 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिये। नाइट्रोजन की आधी मात्रा रोपण के समय और शेष मात्रा रोपण के बाद दो बार में देनी हैं। पहली मात्रा रोपाई के 30 दिन और दूसरी मात्रा 60 दिन बाद देनी हैं।
सिंचाई:-
पहली सिंचाई रोपण के तुरन्त बाद की जाती हैं। बाद की सिंचाई आवश्यकतानुसार 20-25 दिन के अन्तराल पर की जाती हैं।
खरपतवार नियन्त्रण:-
टमाटर की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिये। इसके अलावा रोपाई के 1 से 2 दिन बाद पेंन्डीमेथीलीन 3.3 लीटर मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव कर सकते हैं।
निराई-गुड़ाई:-
रोपाई के बाद पहली निराई-गुड़ाई 20-25 दिन बाद दूसरी 40-45 दिन बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिये। प्रत्येक निराई-गुड़ाई के बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ाना आवश्यक हैं।
कीट:-
फल भेधक सुंडी:- प्रौढ़ कीट मध्यम आकार का पीले भूरे रंग का होता हैं। इसके पृष्ठ भाव व् दोनों किनारों पर एक-एक हल्की पिली धारी होती हैं। इसके पृष्ठ भाग के दोनों किनारे हरे या काले रंग के होते हैं। यह अप्रैल से सितम्बर तक हानि पहुँचाता हैं। इसकी सुंडी कच्चे तथा पके टमाटर में छेद करके अन्दर का गूदा खा जाती हैं।
रोकथाम:- मैलाथियान 50 प्रतिशत ई० सी० 1 लीटर, सेविन 50 प्रतिशत डबल्यू०पी० 2 किग्रा० या थायोडान 35 प्रतिशत ई० सी० 1.5 किग्रा० प्रति एक हेक्टेयर की दर से पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिये।
चूर्णी बेग:- छोटे व प्रौढ़ कीट पत्ती, उनके वृत्तों व् मुलामय प्ररोहों से रस चूसते हैं। इनका प्रकोप नवम्बर तक अधिक रहता हैं।
रोकथाम:- मैलाथियान 50 प्रतिशत ई० सी० या एन्डोसल्फान 0.04 प्रतिशत का घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिये।
रोग:-
डैम्पिंग ऑफ:- इसका प्रकोप मुख्यत: नर्सरी में पौध पर भूमि के समीप तने पर होता हैं। जिससे पौध गिर जाती हैं। यह पिथियम स्पीसीज या राइजोकटिनिया स्पीसीज या फाइटोफथोरा स्पीसीज द्वारा होता हैं।
रोकथाम:- इस रोग से पौधे को बचाने के लिये नर्सरी की मिट्टी स्टरलाईज और बीज बोने से पहले किसी भी कॉपर कम्पाउंड से उपचारित कर लेना चाहिये।
अर्ली ब्लाइट अगेती झुलसा:- यह आल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूँदी से होता हैं। पौधों की पत्तियों व तने पर भूरे व काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। रोग का प्रकोप अधिक होने पर फल गिरने लगते हैं। पौधा सुख जाता हैं।
रोकथाम:- रोगग्रस्त बीज का प्रयोग नहीं करना चाहिये। कॉपर कम्पाउंड का बार-बार छिडकाव करके इस रोग से रोकथाम की जा सकती हैं। कॉपर ओक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डबल्यू०पी० 3 ग्राम प्रति एक लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिये।
लीफ कर्ल:- इस रोग में पत्तियाँ सिकुड़ कर मुड़ जाती हैं। पत्तियाँ खुरदुरी व् मोटी हो जाती हैं। यह रोग बरसात के मौसम में अधिक लगता हैं। जो सफ़ेद मक्खी के द्वारा फैलता हैं।
रोकथाम:- मोनोक्रोटोफॉस 36 प्रतिशत एस० एल० 2 मिली० प्रति एक लीटर या मेटासिस्टोक्स 25 प्रतिशत ई० सी० 1 लीटर मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर 3-4 बार छिडकाव करना चाहिये।
फ्रूटरॉट:- यह फाइटोफथोरा स्पीसीज द्वारा होता हैं। जिस स्थान से फल भूमि के सम्पर्क में आ जाता हैं उस स्थान पर भूरे रंग के फलों पर धब्बे पड़ जाते हैं तथा फल सड़ जाता हैं।
रोकथाम:- भूमि का जल निकास अच्छा होना चाहिये। पौधों को मेड़ों पर और लकड़ियों के सहारे चढ़ाना चाहिये। पौधों पर बोर्डो मिश्रण का छिडकाव करना लाभकारी होता हैं।
रूट नॉट नेमोटोडस:- इस रोग का आक्रमण जड़ों पर होता हैं।
रोकथाम:- भूमि को शोधित करके बुवाई करनी चाहिये। रोग अवरोधी किस्म की बुवाई करनी चाहिये।
पौधों की संघाई:-
टमाटर की अधिकतर प्रजातियाँ फैलने वाली होती हैं जिससे शाखायें भूमि के ऊपर गिर जाती हैं। इस कारण हवा और प्रकाश न मिलने के कारण तथा फलों का सिंचाई के पानी में पड़े रहने के कारण फल रोगग्रस्त हो जाते हैं। इसे अलावा फलों में आकर्षण रंग भी नहीं आता हैं। इसके लिये पौधों को कम से कम 3-4 सेमी० मोटी लकड़ी का सहारा देना चाहिये। जिससे पौधे पूर्ण रूप से प्रकाश पाकर फल आकर में बड़े और आकर्षक होते हैं।
फल लगना:-
बसन्त ऋतु के प्रारम्भ में कम तापक्रम और शरद ऋतु से पहले अधिक तापक्रम रहने से फल कम लगते हैं। जिन दिनों में रात्रि का तापक्रम 13 डिग्री फे० से कम और 38 डिग्री फे० से अधिक होने लगता हैं तब पराग सेचन व् फल लगने पर बुरा प्रभाव पड़ता हैं। अच्छी फलत, अगेती फसल तैयार होने, फलों में कम बिज होने और अच्छी अच्छी उपज के लिये- पैरा-क्लोरीफीनोक्सी एसीटिक एसिड 15-50 पी० पी० एम०, 2-4 डाईक्लोरोफीनोक्सी एसीटिक एसिड 1-5 पी० पी० एम०, जिब्रेलिक एसिड 50 पी० पी० एम०, सी० आई० पी० पी० 25 पी० पी० एम०, एन० ओ० ए० 50-100 पी० पी० एम० आदि हार्मोन्स का प्रयोग बहुत लाभकारी होता हैं।
फलों की तुड़ाई:-
टमाटर का फल लगभग 1 माह में पकने लगता हैं। तुरन्त प्रयोग करने के लिये फल पूर्णरूप से सुर्ख हो जाने पर ही तोड़ना चाहिये। दूर भेजने के लिए फलों की तुड़ाई तब करते हैं जब फल पर ललाई आने लगती हैं।
उपज:-
टमाटर की उपज 300-400 कुन्तल प्रति एक हेक्टेयर होती हैं।
भण्डारण:-
समीप वाले बाजारों में टमाटर शाम को तोड़कर सुबह को भेज दिया जाता हैं। टमाटर के लिये संग्रह घर का तापक्रम 12 से 15 डिग्री से० होना चाहिये। परिपक्व हरे टमाटर संग्रह घर में 10 से 15 डिग्री से० पर लगभग एक माह तक रखे जा सकते हैं। पके हुये टमाटर लगभग 10 दिन तक 4.5 डिग्री से० तापक्रम पर रखे जा सकते हैं।
बीज उत्पादन:-
बीजों में मुख्य रूप से स्व-परागण होता हैं, किन्तु कीटों द्वारा कुछ अंशों में पर-परागण भी होता हैं। अंत: दो किस्मों के बीच 200 मीटर की दूरी रखनी चाहिये। फसल का तीन बार निरिक्षण किया जाता हैं। पहला फूल आने से पहले, दूसरा फूल आने के समय एवं तीसरा फलों की पूर्ण वृद्धि हो जाने पर करते हैं। स्वस्थ फल को बिज के लिए पौधों पर ही छोड़ दिया जाता हैं। पकने पर उन्हें तोड़ लिया जाता हैं। फल का बाहरी छिलका हटा देते हैं तथा फल को छोटे-छोटे भागों में काट लेते हैं। इस प्रकार बीज गूदे से आसानी से निकल जाते हैं इसके बाद बीजों को पानी में डूबा देते हैं। हल्के बीज पानी में तैरने लगते हैं। उन्हें छानकर हटा देते हैं। अब बीजों को हल्की धूप में सुखाते हैं। इसकी औसत उपज 125 से 200 किलोग्राम प्रति एक हेक्टेयर होती हैं।
final
रोकथाम:- मैलाथियान 50 प्रतिशत ई० सी० 1 लीटर, सेविन 50 प्रतिशत डबल्यू०पी० 2 किग्रा० या थायोडान 35 प्रतिशत ई० सी० 1.5 किग्रा० प्रति एक हेक्टेयर की दर से पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिये।
चूर्णी बेग:- छोटे व प्रौढ़ कीट पत्ती, उनके वृत्तों व् मुलामय प्ररोहों से रस चूसते हैं। इनका प्रकोप नवम्बर तक अधिक रहता हैं।
रोकथाम:- मैलाथियान 50 प्रतिशत ई० सी० या एन्डोसल्फान 0.04 प्रतिशत का घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिये।
रोग:-
डैम्पिंग ऑफ:- इसका प्रकोप मुख्यत: नर्सरी में पौध पर भूमि के समीप तने पर होता हैं। जिससे पौध गिर जाती हैं। यह पिथियम स्पीसीज या राइजोकटिनिया स्पीसीज या फाइटोफथोरा स्पीसीज द्वारा होता हैं।
रोकथाम:- इस रोग से पौधे को बचाने के लिये नर्सरी की मिट्टी स्टरलाईज और बीज बोने से पहले किसी भी कॉपर कम्पाउंड से उपचारित कर लेना चाहिये।
अर्ली ब्लाइट अगेती झुलसा:- यह आल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूँदी से होता हैं। पौधों की पत्तियों व तने पर भूरे व काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। रोग का प्रकोप अधिक होने पर फल गिरने लगते हैं। पौधा सुख जाता हैं।
रोकथाम:- रोगग्रस्त बीज का प्रयोग नहीं करना चाहिये। कॉपर कम्पाउंड का बार-बार छिडकाव करके इस रोग से रोकथाम की जा सकती हैं। कॉपर ओक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डबल्यू०पी० 3 ग्राम प्रति एक लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिये।
लीफ कर्ल:- इस रोग में पत्तियाँ सिकुड़ कर मुड़ जाती हैं। पत्तियाँ खुरदुरी व् मोटी हो जाती हैं। यह रोग बरसात के मौसम में अधिक लगता हैं। जो सफ़ेद मक्खी के द्वारा फैलता हैं।
रोकथाम:- मोनोक्रोटोफॉस 36 प्रतिशत एस० एल० 2 मिली० प्रति एक लीटर या मेटासिस्टोक्स 25 प्रतिशत ई० सी० 1 लीटर मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर 3-4 बार छिडकाव करना चाहिये।
फ्रूटरॉट:- यह फाइटोफथोरा स्पीसीज द्वारा होता हैं। जिस स्थान से फल भूमि के सम्पर्क में आ जाता हैं उस स्थान पर भूरे रंग के फलों पर धब्बे पड़ जाते हैं तथा फल सड़ जाता हैं।
रोकथाम:- भूमि का जल निकास अच्छा होना चाहिये। पौधों को मेड़ों पर और लकड़ियों के सहारे चढ़ाना चाहिये। पौधों पर बोर्डो मिश्रण का छिडकाव करना लाभकारी होता हैं।
रूट नॉट नेमोटोडस:- इस रोग का आक्रमण जड़ों पर होता हैं।
रोकथाम:- भूमि को शोधित करके बुवाई करनी चाहिये। रोग अवरोधी किस्म की बुवाई करनी चाहिये।
पौधों की संघाई:-
टमाटर की अधिकतर प्रजातियाँ फैलने वाली होती हैं जिससे शाखायें भूमि के ऊपर गिर जाती हैं। इस कारण हवा और प्रकाश न मिलने के कारण तथा फलों का सिंचाई के पानी में पड़े रहने के कारण फल रोगग्रस्त हो जाते हैं। इसे अलावा फलों में आकर्षण रंग भी नहीं आता हैं। इसके लिये पौधों को कम से कम 3-4 सेमी० मोटी लकड़ी का सहारा देना चाहिये। जिससे पौधे पूर्ण रूप से प्रकाश पाकर फल आकर में बड़े और आकर्षक होते हैं।
फल लगना:-
बसन्त ऋतु के प्रारम्भ में कम तापक्रम और शरद ऋतु से पहले अधिक तापक्रम रहने से फल कम लगते हैं। जिन दिनों में रात्रि का तापक्रम 13 डिग्री फे० से कम और 38 डिग्री फे० से अधिक होने लगता हैं तब पराग सेचन व् फल लगने पर बुरा प्रभाव पड़ता हैं। अच्छी फलत, अगेती फसल तैयार होने, फलों में कम बिज होने और अच्छी अच्छी उपज के लिये- पैरा-क्लोरीफीनोक्सी एसीटिक एसिड 15-50 पी० पी० एम०, 2-4 डाईक्लोरोफीनोक्सी एसीटिक एसिड 1-5 पी० पी० एम०, जिब्रेलिक एसिड 50 पी० पी० एम०, सी० आई० पी० पी० 25 पी० पी० एम०, एन० ओ० ए० 50-100 पी० पी० एम० आदि हार्मोन्स का प्रयोग बहुत लाभकारी होता हैं।
फलों की तुड़ाई:-
टमाटर का फल लगभग 1 माह में पकने लगता हैं। तुरन्त प्रयोग करने के लिये फल पूर्णरूप से सुर्ख हो जाने पर ही तोड़ना चाहिये। दूर भेजने के लिए फलों की तुड़ाई तब करते हैं जब फल पर ललाई आने लगती हैं।
उपज:-
टमाटर की उपज 300-400 कुन्तल प्रति एक हेक्टेयर होती हैं।
भण्डारण:-
समीप वाले बाजारों में टमाटर शाम को तोड़कर सुबह को भेज दिया जाता हैं। टमाटर के लिये संग्रह घर का तापक्रम 12 से 15 डिग्री से० होना चाहिये। परिपक्व हरे टमाटर संग्रह घर में 10 से 15 डिग्री से० पर लगभग एक माह तक रखे जा सकते हैं। पके हुये टमाटर लगभग 10 दिन तक 4.5 डिग्री से० तापक्रम पर रखे जा सकते हैं।
बीज उत्पादन:-
बीजों में मुख्य रूप से स्व-परागण होता हैं, किन्तु कीटों द्वारा कुछ अंशों में पर-परागण भी होता हैं। अंत: दो किस्मों के बीच 200 मीटर की दूरी रखनी चाहिये। फसल का तीन बार निरिक्षण किया जाता हैं। पहला फूल आने से पहले, दूसरा फूल आने के समय एवं तीसरा फलों की पूर्ण वृद्धि हो जाने पर करते हैं। स्वस्थ फल को बिज के लिए पौधों पर ही छोड़ दिया जाता हैं। पकने पर उन्हें तोड़ लिया जाता हैं। फल का बाहरी छिलका हटा देते हैं तथा फल को छोटे-छोटे भागों में काट लेते हैं। इस प्रकार बीज गूदे से आसानी से निकल जाते हैं इसके बाद बीजों को पानी में डूबा देते हैं। हल्के बीज पानी में तैरने लगते हैं। उन्हें छानकर हटा देते हैं। अब बीजों को हल्की धूप में सुखाते हैं। इसकी औसत उपज 125 से 200 किलोग्राम प्रति एक हेक्टेयर होती हैं।
final
Bahut acha
जवाब देंहटाएंThank you
जवाब देंहटाएंBarsati me kon sa tamatar lagana chania
जवाब देंहटाएंAcha laga
जवाब देंहटाएंHi, I like your post really I have read first-time Thanks for sharing keep up the good work.
जवाब देंहटाएंTomato Pests and their Management
Tamatar ka Chabi kaun sa hai
जवाब देंहटाएंSar ji bacterial ka koi dava hai to bataiye
जवाब देंहटाएंJully august ke liye konsi variety lagani chaiye
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