सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

लहसुन


वैज्ञानिक नाम (Botanical name):-             एलियम सटाइवम (Alium sativum)
कुल (Family) :-                                        एलिएसी (Alliaceae)
गुणसूत्र संख्या (Chromosome number):-  2n = 14

लहसुन:-
भारत वर्ष में लहसुन की खेती का महत्वपूर्ण स्थान हैं। इसकी खेती सम्पूर्ण भारत में की जाती हैं। विश्व में भारत का क्षेत्रफल एवं उत्पादन की द्रष्टि से तीसरा स्थान हैं। तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश (मैनपुरी), गुजरात, मध्य प्रदेश (इन्दौर, रतलाम और मन्दसौर) आदि राज्यों में बड़े पैमाने पर उगाया जाता हैं। लहसुन मुख्यत: कलियों द्वारा उगाया जाता हैं। यह मसाले वाली एक प्रमुख फसल हैंलहसुन एक नकदी फसल हैं
  • लहसुन में चरपराहट एक तेल एलाइल प्रोपाइल डाईसल्फाइड़ तथा गन्धक के कारण होती हैं
उत्पत्ति:-
लहसुन का उत्पत्ति स्थान मध्य एशिया व भूमध्य सागरीय क्षेत्र माना जाता हैं

जलवायु:-
लहसुन का पौधा ज्यादा गर्मी व सर्दी सहन नही कर पाता हैं। इसलिये उचित वृद्धि के लिए गर्मी व सर्दी दोनों के बीच का मौसम उत्तम रहता हैं। लहसुन की खेती समुद्र तल से 1000-3000 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानों पर आसानी से की जा सकती हैं।

भूमि:-
लहसुन के लिए ह्यूमस तथा पोटाश से भरपूर दोमट मिट्टी अति उत्तम मानी जाती हैं। वैसे बलुई दोमट व चिकनी मिट्टी में लहसुन की खेती की जा सकती हैं। भारी मिट्टी में लहसुन शल्क कन्द विकृत हो जाते हैं।

भूमि की तैयारी:-
खरीफ की फसल कटने के बाद 2 जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करते हैं। उसके बाद 4-5 जुताई देशी हल से करके बाद में पाटा चलाकर भूमि को समतल करते हैं एवं भुरभुरी बना लेते हैं।

प्रजाति:-
लहसुन की यमुना सफ़ेद-1 (जी-1)(अवधि 150-160, उपज 150-175), एग्रीफाउन्ड सफ़ेद (जी-41)(अवधि 140-160, उपज 130-140), यमुना सफ़ेद-2 (जी-50)(अवधि 165-170, उपज 150-155), यमुना सफ़ेद-3 (जी-282)(अवधि 140-150, उपज 175-200), एग्रीफाउन्ड पार्वती (जी-313) तथा वी०एल०जी०-7 आदि प्रमुख प्रजाति हैं

खाद एवं उर्वरक:-
खेत की अन्तिम जुताई के समय गोबर की सड़ी हुई खाद 200 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर जुताई करते हैंनाइट्रोजन 100 किग्रा०, फास्फोरस 60 किग्रा० और पोटाश 120 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाना चाहिये। इसके अलावा नाइट्रोजन 100 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से खड़ी फसल दो बार देनी चाहिये। पहली मात्रा बुवाई के 45 दिन बाद एवं दूसरी मात्रा 60 दिन पर देनी चाहिये।

बीज दर:-
लहसुन का बीज 5-7 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त होता हैं

बुवाई का समय:-
लहसुन की बुवाई अक्टूबर से नवम्बर में की जाती हैं जबकि कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु में बुवाई अप्रैल से अगस्त तक की जाती हैं। जलवायु अनुकूल होने पर कुछ भागों में दो बार की जाती हैं। एक बार मई तथा दूसरी बार अक्टूबर माह में की जाती हैं।

बुवाई का तरीका:-
बुवाई करते समय खेत में उपयुक्त नमी होनी चाहिये। खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बाँट लेना चाहिये। क्यारी में लहसुन की एक-एक कली को पंक्ति में उपयुक्त स्थान पर खड़ी दशा में गाड़ना चाहिये। कली का नुकीला भाग ऊपर की और होना चाहिये। लहसुन की कली को भूमि में लगभग 1/2 (आधा) सेमी० की गहराई पर गाड़ना चाहिये, जिससे गाड़ी हुई कली की शिखा मिट्टी से ढ़क जाये। पंक्ति से पंक्ति 15 सेमी० एवं पौधे से पौधे 7-10 सेमी० की दूरी पर लगाना चाहिये। लगभग एक सप्ताह में अंकुरण हो जाता हैं।

प्रसारण:-
लहसुन की गाँठ, लहसुन में उपलब्ध लहसुन की कली (जवे) से बनती हैं। गाँठ को हाथों से मसल कर कली को अलग-अलग कर लिया जाता हैं। इन्ही कलियों को बुवाई के काम में लाया जाता हैं।

निराई-गुड़ाई:-
लहसुन की फसल में 3-4 जुताई की आवश्यकता होती हैं। निराई-गुड़ाई करने से उपज अच्छी होती हैं।

खरपतवार नियंत्रण:-
लहसुन की जड़ें कम गहराई तक जाती हैं। अतः 2-3 बार उथली गुड़ाई करके खरपतवार को निकाल देना चाहिये। पेन्डीमैथीलिन 3.5 लीटर या ऑक्सी-फ्लोरफेन 1 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करते हैं।
 
सिंचाई|:-
लहसुन की फसल में लगभग 5-6 सिंचाई की आवश्यकतानुसार होती हैं। सर्दी के मौसम में 15-20 दिन के अन्तर पर व गर्मी में प्रति सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता होती हैं कन्दों की खुदाई करने के 15-20 दिन पूर्व सिंचाई बन्द कर देनी चाहिये।

खुदाई एवं सुखना:-

लहसुन की पत्ती जब सुख जाएँ एवं ऊपरी भाग भूमि की सतह पर झुक जाये तब खुदाई का उपयुक्त समय होता हैं। लहसुन की पत्ती जब हरी अवस्था में तब खुदाई नही करनी चाहिये। खुदाई के बाद गाँठों को छाया में हवादार स्थान पर 2-3 दिन तक सुखाया जाता हैं। गाँठों को कटी हुई पत्तियों से ढककर धूप से बचाना चाहिये।

लहसुन की गाँठों में समय से पूर्व अंकुरण को रोकने के उपाय:-
  • नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश का उचित मात्रा में प्रयोग करना
  • नाइट्रोजन की आती मात्रा बुवाई से पूर्व तथा शेष मात्रा बुवाई के 45 एव 60 दिन पर देनी चाहिये
  • दूरी को कम करना चाहिये (15X7सेमी०)
  • साइकोसेल अथवा मेलिक हाइड्राजाइड का 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये
  • निचले खेतों में बुवाई नही करनी चाहिये
  • अधिक व बार-बार सिंचाई नही करनी चाहिये तथा खेत में पानी रुकना नही चाहिये
  • नाइट्रोजन का अधिक प्रयोग ना करे। अधिक नाइट्रोजन देने से गाँठे कम मजबूत व कली खोखली रह जाती हैं।
कीट:-
माइट:- इसके प्रकोप से पत्ती टेढ़ी हो जाती हैं, जिन पर पीली व हरी धारियाँ बन जाती हैं। पत्ती को कली से बाहर निकालने में कठिनाई होती हैं। अंकुरण में देरी होती हैं। पत्ती भी सही नही निकलती हैं। भण्डारण में अधिक समय तक इनका प्रकोप होने की सम्भावना बढ़ जाती हैं।
रोकथाम:- मिथाइल ब्रोमाइड 1 किग्रा० मात्रा

थ्रिप्स:- यह छोटे और पीले रंग का कीट होता हैंयह कीट पत्ती का रस चूसते हैं। जिससे इनका रंग चितकबरा दिखाई देने लगता हैं। पत्तियों के शीर्ष भूरे होकर मुरझाकर सूख जाते हैं।
रोकथाम:- मेलाथियान 50 प्रतिशत ई०सी० 1 ग्राम/लीटर पानी का घोल बनाकर कीट दिखाई देते ही छिड़काव करे

रोग:-
बैंगनी धब्बा:- इस रोग के प्रभाव से पट्टी व तने पर सफ़ेद धब्बे बनते हैं जिससे पत्ती व तना कमजोर होकर गिर जाते हैं फरवरी व अप्रैल में इसका प्रकोप अधिक होता हैं
रोकथाम:- मेनकोज़ेब + कार्बनडाजिम मिश्रण की 2.5 ग्राम, मेनकोज़ेब 75 प्रतिशत डबल्यू०पी0 2.5 ग्राम या कार्बनडाजिम 46.27 प्रतिशत एस०सी० 1 ग्राम प्रति एक लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करते हैं

उपज:-
लहसुन की उपज 100-150 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती हैं

भण्डारण:-
लहसुन की गाँठों को पूर्ण रूप से सुखाकर ही भण्डारण करना चाहिये। गाँठो को पत्ती सहित भण्डारण करने से हानि कम होती हैं। शीतगृह में भण्डारण लम्बी अवधि के लिये किया जा सकता हैंभण्डारण में काली फफूंद (Black Mold) नामक रोग से हानि होती हैंभण्डारण गृह हवादार होना चाहिये

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