बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

लौकी

लौकी (Bottle gourd)
 
वैज्ञानिक नाम (Botanical name):-             पाइसम सटाइवम (Lagenaria siceraria)
कुल (Family) :-                                        कुकुरबिटेएसी (Cucurbitaceae)
गुणसूत्र संख्या (Chromosome number):-  2n = 22

लौकी:-
इसकी खेती देश के अधिकतर राज्यों में की जाती हैं। वर्षभर अधिक उपज देने वाली फसल के कारण खीरावर्गीय संबजियों में लौकी का महत्वपूर्ण स्थान हैं। लौकी का 86 प्रतिशत भाग खाने के काम आता हैं।

उत्पत्ति:-
लौकी का जन्म स्थान अफ्रीका एवं भारत माने जाते हैं।

जलवायु:-
शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र में सिंचाई की उचित व्यवस्था होने पर लौकी की खेती की जाती सकती हैं। और जायद की फसल में उच्च तापमान (35 से 42 डिग्री से०) सहन करने की क्षमता भी होती हैं।

भूमि:-
आलू की अच्छी उपज के लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती हैं। भूमि का पी०एच० मान 5.5 से 7.0 तक होना चाहिये। जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये। अधिक ठंडक (पाला) पौधों के लिए हानिकारक होता हैं।

खेत की तैयारी:-
खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से लगभग 3-4 जुताई की जाती हैं। उसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करके तैयार कर लिया जाता हैं।

बुवाई का समय:-
लौकी की बुवाई जायद में फरवरी के प्रारम्भ से लेकर मार्च के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती हैं। खरीफ की बुवाई जुलाई से अगस्त तक की जाती हैं।

बीज दर:-
लौकी की बीज दर 4-5 किग्रा० प्रति एक हेक्टेयर होती हैं।

बुवाई का तरीका:-
लौकी के बीज की बुवाई और अंकुरण के लिये खेत में उचित नमी होनी चाहिये। लौकी का बीज कतारों में थाला बनाकर 2.5 सेमी० की गहराई पर बोया जाता हैं। कतार से कतार की दूरी 2-2.5 मीटर और थालों से थालों की दूरी 1 मीटर होनी चाहिये। तथा प्रति एक थाले में 2-4 बीज बोये जाते हैं।

उपचार:-
लौकी के बीज की बुवाई कैप्टान 2 ग्राम प्रति एक किलोग्राम बीज को उपचारित करके बुवाई करनी चाहिये।
 
प्रजातियाँ:-
  • के० लाँग ग्रीव- पौधे की बढ़वार अधिक, फल हल्के रंग के लम्बे, चिकने, मुलायम, गूदेदार, 15-20 फल प्रति पौधा, औसत भार 1.5-2 किग्रा०, उपज 250-300 कुंतल प्रति एक हेक्टेयर, वर्षाकालीन, सम्पूर्ण प्रदेश में उपयुक्त, पछेती, फलत दीर्घ अवधि तक प्राप्त होता हैं।
  • आजाद हरित- पौधे मध्यम बढ़वार वाले, अगेती किस्म, खरीफ व जायद दोनों के लिए उपयुक्त, फलत 60-65 दिन में शुरू, फल छोटे 40-50 सेमी०, औसत भार 1 किग्रा०, 25-30 फल प्रति पौधा, उपज 400-500 कुंतल प्रति एक हेक्टेयर, सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त, फलत सीमित अवधि तक प्राप्त होती हैं।
  • अर्का बहार- पौधा औसतन 43 सेमी० लम्बा, 26 सेमी० घेराव का होता हैं। फल का औसतन भार 1 किग्रा०, हल्का हरा रंग, गूदा कोमल, खरीफ व जायद दोनों के लिए उपयुक्त, उपज 400-450 कुंतल प्रति एक हेक्टेयर, 115-120 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं।
  • पूसा समर प्रोलिफीक लौंग- फल 40-45 सेमी० लम्बा, 20-25 सेमी० घेराव, रंग हल्का हरा, गूदा कोमल, खरीफ व जायद दोनों के लिए उपयुक्त, उपज 119 कुंतल प्रति एक हेक्टेयर होती हैं।
  • पूसा समर प्रोलिफीक राउण्ड- फल हरा, गोल 15 सेमी० व्यास वाले,  अधिक उपज, खरीफ व जायद दोनों के लिए उपयुक्त हैं।
  • पूसा संदेश- फल गोल, हरा रंग लुभावना, मध्यम आकार, औसतन वजन 600 ग्राम, का होता हैं।
अन्य प्रजातियाँ:-

खाद एवं उर्वरक:-
खेत की तैयारी करते समय सड़ी हुई गोबर की खाद 150-200 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिये। बुवाई के समय अन्तिम जुताई से पहले नाइट्रोजन 30 किग्रा० और फास्फोरस 40 किग्रा० प्रति एक हेक्टेयर की दर से देनी चाहिये। शेष नाइट्रोजन की आधी मात्रा एक महीने बाद गुड़ाई करके नमी होने पर पौधों के थालों में देनी चाहिये।

सिंचाई:-
गर्मी के मौसम में अधिक पानी की जरूरत होती हैं। गर्मी में 4-5 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करना उपयुक्त रहता हैं। खरीफ फसल को कम पानी की जरूरत होती हैं। जो की क्षेत्र की कुल औसत वर्षा पर निर्भर करता हैं।

खरपतवार नियंत्रण:-
समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को निकलते रहना चाहिये। लवणीय पानी से सिंचाई करके कई बार गुड़ाई करनी चाहिये, ताकि जमीन पर कड़ी परत न बन सके। लताओं के फैलने के लिये लकड़ी की झाड़ियाँ खेत में कई स्थानों पर रख देनी चाहिये।

कीट:-
लाल भृंग:- यह किट बीज जमने के बाद पौधे की कोमल पत्ती को काटकर नुकसान पहुँचाता हैं।
रोकथाम:- मैलाथियान 0.1 प्रतिशत या रोगोर 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर 7-10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिये।
माहू:- यह किट पत्ती का रस चूसता हैं।
रोकथाम:- मैलाथियान 50 प्रतिशत ई०सी० 1 मिली० प्रति एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।
फल मक्खी:- यह कीट फल की प्रारम्भिक अवस्था में विकसित होते ही फल को छेदकर खराब कर देती हैं।
रोकथाम:- इन्डोसल्फान या थायोडान 6 मिली० प्रति 4.5 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये। ऐसा करने से मक्खी द्वारा होने वाले नुकसान को रोका जा सकता  हैं।

रोग:-
चूर्णिल आसिता या छछिया रोग:- इस रोग का फसल पर बहुत भयंकर प्रकोप होता हैं। पत्ती और तने पर साफेद पाउडर जैसी परत बन जाती हैं।
रोकथाम:- बावस्टीन 2 ग्राम या केराथेन 1.5 मिली० प्रति एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। गन्धक का चूर्ण 20-25 किग्रा० प्रति एक हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से चूर्णिल आसिता और माहू को कम किया जा सकता हैं।

उकठा रोग:-
रोकथाम:- कैप्टान 2 ग्राम प्रति एक किलोग्राम बीज को उपचारित करके बुवाई करनी चाहिये।
सूत्रकृमि:-
रोकथाम:- इसकी रोकथाम के लिये फसल चक्र अपनायें। बुवाई के समय खेत में नीम केक या नीमागोन 30 किग्रा० प्रति एक हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिये।
विषाणु रोग:- इस रोग में पत्ती सिकुड़ जाती हैं।
रोकथाम:- रोगग्रस्त पौधे को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिये।

उपज:-
फल की तुड़ाई उचित अवस्था पर करने से अधिक उपज प्राप्त होती हैं। दोनों मौसम की फसल की उपज में बहुत अन्तर पाया जाता हैं। इसका मुख्य कारण गर्मी में फसल की सिंचाई की व्यवस्था हैं। लौकी की एक लता से 3-10 फल प्राप्त हो जाते हैं। लौकी की औसत उपज 100-150 कुंतल प्रति एक हेक्टेयर की दर से होती हैं। जायद फसल की तुड़ाई अप्रैल से जून और खरीफ (वर्षा ऋतु) फसल की तुड़ाई सितम्बर से दिसम्बर तक चलती हैं।

भण्डारण:-
लौकी के फल को 2-3 दिन तक सामान्य तौर पर रखा जा सकता हैं।

फ़ाइनल

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