सोमवार, 6 नवंबर 2017

बेल

बेल (Bael)
 
वैज्ञानिक नाम (Botanical name):-              (Psidium guajava L.)।
कुल (Family) :-                                        (Myrtaceae)
गुणसूत्र संख्या (Chromosome number):-   2n = 

बेल:-
बेल उत्तर भारत का पौधा हैं। बेल का फल पौष्टिक तथा औषधीय गुण वाला होता हैं।  भारत के अलावा श्रीलंका, पाकिस्तान, बंगला देश, वर्मा, थाईलैंड व दक्षिण पूर्वी एशिया आदि में इसकी बागवानी की  जाती हैं। भारत में बेल हिमालय से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक इसकी खेती होती हैं।

उत्पत्ति:-
बेल का मूल स्थान भारत हैं।

भूमि:-
बेल की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती हैं। बंजर एवं ऊसरीली भूमि जिसका पी० एच० मान 8.0 तक हो, में भी इसकी खेती की जा सकती हैं।

जलवायु:-
इसके लिए गर्म-ठंडी जलवायु ठीक रहती हैं।

प्रजतियाँ:-
बेल की जातियाँ निम्न हैं- देवरिया, बड़ा कागजी इटावा, मिर्जापुर कागजी, बघेल, बस्ती न०-2, कागजी गोंडा न०-1, फ़ैजाबाद कागजी, कागजी गोंडा न०-3, देवरिया बड़ा चकिया, सिवान बड़ा व सिवान लम्बा आदि मुख्य किस्म हैं।

प्रवर्धन:-
बेल का प्रवर्धन बीज द्वारा ही किया जाता हैं। जिस कारण इसकी विशेष किस्म नहीं हैं। इनका कायिक प्रवर्धन करके रोपण किया जाना चाहिये। बीज के अतिरिक्त जड़ कलम अथवा अन्त: भूस्तारी बेल का प्रवर्धन किया जा सकता हैं। परन्तु पैंचबन्दी या टी चश्मा द्वारा मई-अगस्त माह तक बेल का प्रवर्धन आसानी से किया जा सकता हैं। मूल वृन्त के लिए देशी बेल के बीजू पौधे प्रयोग किये जाते हैं।

रोपण का समय:-
बेल के पौधों की रोपाई का कार्य जून-जुलाई में किया जाता हैं। बेल के पौधे में लाइन से लाइन 8 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 8 मीटर होनी चाहिये।

कृन्तन:-
बेल की संघाई रुपान्तरित अग्र प्ररोह विधि से करनी चाहिये। सूखी, रोगी एवं कीटयुक्त शाखाओं को निकाल देना चाहिये। काँट-छांट अप्रैल-मई और अगस्त के माह में करनी चाहिये। अगस्त में केवल पत्तियों की छटाईं की जाती हैं।

अन्त: सस्यन:-
बेल के बाग़ में लोबिया, मूंग, उर्द, मटर, चना आदि फसलें उगाई जानी चाहिये।

खाद:-
बेल के पौधे में 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फॉस्फोरस और 250 ग्राम पोटाश प्रति एक पेड़ प्रति वर्ष देना चाहिये। जून-जुलाई माह में फैलाव में नाली बनाकर उर्वरकों का प्रयोग किया जाता हैं।

फूल आना:-
बेल के पौधे में जुलाई माह में फूल आते हैं तथा फल अप्रैल-मई में तैयार हो जाते हैं।

फलों की तुड़ाई:-
जब फल का रंग गहरे हरे से बदलकर पीला हरा हो जाये तो फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिये। फलों को डंठल सहित तोड़ा जाता हैं। फल अप्रैल-मई में तोड़े जाते हैं।

ऊपज:-
बेल के 800-1000 फल प्रति एक पेड़ से एक वर्ष में प्राप्त किये जा सकते हैं।

कीट:-
पर्णभक्षी:- यह पेड़ की पत्तियों को काटकर नुकसान पहुँचाता हैं।
रोकथाम:- रोकथाम के लिए फलों में वर्णित दवाओं का प्रयोग करना चाहिये।

रोग:-
कैंकर:- बेल को कैंकर से काफी नुकसान होता हैं। यह जैन्थोमोनस बिल्बी वैक्टीरिया द्वारा होता हैं। प्रभावित भाग पर जलशोषित धब्बे बनते हैं जो बाद में बढ़कर भूरे हो जाते हैं। बाद में पूर्ण प्रभावित भाग के उत्तक गिर जाते हैं, और पत्तियों पर छिद्र बन जाते हैं।
रोकथाम:- इसकी रोकथाम के लिए स्ट्रैप्टोमाईसीन सल्फेट नामक दवा के 500 भाग प्रति 10 लाख भाग पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिये।

final

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