मंगलवार, 7 नवंबर 2017

अंगूर

अंगूर (Grapes)
 
वैज्ञानिक नाम (Botanical name):-              (Vitis vinifera L.)
कुल (Family) :-                                        (Vitaeeae)
गुणसूत्र संख्या (Chromosome number):-   2n =  38
 
अंगूर:-
अंगूर का उत्पादन क्षेत्र की द्रष्टि से फलों में प्रथम स्थान हैं, विश्व के कुल फल का लगभग आधा इस भाग के अन्तर्गत आता हैं। विश्व के अनेक देशों में अंगूर उगाया जाता हैं। इसका उत्पादन लगभग 110 लाख हेक्टेयर से भी अधिक हैं। आजादी के पहले भारत में काफी क्षेत्र में अंगूर की बागवानी की जाती थी। बंटवारे के बाद धारणा थी कि भारत में अंगूर पैदा नहीं किये जा सकते। लेकिन उद्यान वैज्ञानिकों के फलस्वरूप इसकी बागवानी आज लगभग पूरे देश में की जाती हैं। दक्षिण भारत में कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु राज्य में सर्वाधिक खेती की जाती हैं, और उत्तरी भारत में हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश व दिल्ली राज्यों में इसकी खेती की जाती हैं।
 
उत्पत्ति:-
 
 
स्थान का चुनाव:-
अंगूर की बेलें किसी भी स्थान पर लगे जा सकती हैं, लेकिन कोनों पर या कोनरों के मध्य में ही लगाना अच्छा रहता हैं। जिससे अन्य शाकीय एवं फूलों को इसकी छाया से होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। आँगन में जहाँ पर उचित मात्रा में धूप उपलब्ध हो, इसकी बेलें लगाई जा सकती हैं।
 
जलवायु:-अंगूर उपोष्ण जलवायु का पौधा हैं। परन्तु इसकी विभिन्न किस्मों की खेती हिमालय की तलहटी से लेकर कन्याकुमारी तक की जाती हैं। पौधे की अच्छी फलत के लिए गर्म तथा सूखा मौसम उपयुक्त हैं। फलों के पकने के समय बरसात होने से दाने खट्टे रह जाते हैं तथा फटने लगते हैं। जाड़े में मौसम ठंडा होना चाहिये तथा फूल आते समय मौसम साफ रहना चाहिये।
 
मिट्टी:-
अंगूर की खेती के लिए गहरी दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो अच्छी रहती हैं। ऊसरीली भूमि में अंगूर की खेती नहीं की जाती हैं।
 
उन्नत किस्में:-
उपयोग अनुसार अंगूर की जातियाँ निम्न हैं-
  • खाने वाली किस्म:- ब्स्यूटी सीडलैस, परलैट, पूसा सीडलैस, डीलाइट, काडिनल, गोल्ड, अनाब-ए-शाही, बंगलौर, ब्लू, चीमा साहबी, काली साहबी, गुलाबी, कली यम्मा।
  • डिब्बा बन्दी वाली किस्म:- थाम्पसल सीडलैस, हिराड़े, परलैट, डीलाइट।
  • शराब बनाने वाली किस्म:- ब्यूटी सीडलैस, ब्लैक चम्पा, ब्लैक मस्कट, व्हाइट रेजलिग, टिन्टा।
  • रस वाली किस्म:- ब्यूटी सीडलैस, अर्ली मस्कट, चैम्पियन, ब्लैक चम्पा, बंगलौर ब्लू।
  • सुखाई जाने वाली किस्म:- पूसा सीडलैस, किशमिश बेली, ब्लैक कीरिन्थ, मस्कट ऑफ एल्बेजेन्डर।
क्षेत्र के अनुसार अंगूर की जातियाँ निम्न हैं-
  • दक्षिण भारत के लिए:- अनाब-ए-शाही, बंगलौर ब्लू, भोकरी, ब्लैक चम्पा, चीमा साहबी, गुलाबी, काली साहबी, पनडारी साहबी, थोम्पसन सीडलैस, अर्कावती, अर्काकंचन, अर्काश्याम, अर्काहंस।
  • परलैट, ब्यूटी सीडलैस, पूसा सीडलैस, डिलाइट, हिमरोड़, किशमिश बेली, थोम्पसन सीडलैस, भारत अर्ली, काडिनल, चैम्पियन, अर्ली मस्कट, गोल्ड।
पकने के अनुसार अंगूर की जातियाँ निम्न हैं-
  • शीघ्र पकने वाली:- ब्यूटी सीडलैस, परलैट, पूसा सीडलैस, डिलाइट, थोम्पसन सीडलैस, गोल्ड, गुलाबी, हिमरोड़, किशमिश।
  • देर से पकने वाली:- अनाब-ए-शाही, बंगलौर ब्लू, चीमा साहबी, काली साहबी, साहबी, भोकरी।
 
प्रवर्धन:-
अंगूर का प्रवर्धन कटिंग द्वारा किया जाता हैं। इसके लिए 23 सेमी० लम्बी परिपक्व 3-4 गांठ वाली कटिंग का प्रयोग किया जाता हैं। उनका बण्डल बनाकर नम बालू में भंडारित कर देते हैं, अथवा सीधे तैयार क्योरियों में रोपण कर दिया जाता हैं।
 
रोपण का समय:-
एक वर्ष आयु की जड़ वाली कलमों का रोपण उत्तर भारत में जनवरी माह में किया जाता हैं। दक्षिण भारत में रोपण अक्तूबर-नवम्बर व मार्च-अप्रैल में किया जाता हैं।
 
पौधों की सफाई का काँट-छाँट:-
अंगूर को 2-3 वर्ष तक संघाई एवं काँट-छाँट द्वारा बेलों के आकार एवं सुदृढ़ ढाचें का शीर्ष प्रणाली के अनुसार तैयार करना अति आवश्यक हैं, इसलिये आरम्भ में जो 2-3 कलिकाएँ फुटाव लेती हैं, उनमें से केवल एक ही स्वस्थ एवं सीधा प्ररोह मुख्य तने के लिए जमीन से एक मीटर तक सीधा बढ़ने दिया जाता हैं। इसी समय बेल को सीधा और मजबूत बनाने के लिए बाँस या लकड़ी के टुकड़े का सहारा दिया जाता हैं। एक वर्ष पुरानी बेल के तने को जनवरी माह में एक मीटर की ऊँचाई से छंटाई कर दे जिससे शीर्ष पर 5-6 मुख्य शाखायें विकसित हो जाये। इन्ही मुख्य शाखाओं पर प्ररोह अथवा फली वाली टहनियाँ विकसित हो जाती हैं।
 
खाद एवं उर्वरक:-
एक वर्ष पुरानी बेल को अच्छी बढ़वार के लिए 15-20 किग्रा० जैविक खाद प्रति एक बेल जनवरी माह में छंटाई के तुरन्त बाद डालकर मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिये। 2 या 3 वर्ष की बेल में 15-20 किग्रा० जैविक खाद के साथ 250 ग्राम नाइट्रोजन, 100 ग्राम फॉस्फोरस और 100 ग्राम पोटाश उर्वरक का मिश्रण बनाकर प्रति एक बेल में डालना चाहिये। फल वाली बेल में 100 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम सुपर फॉस्फेट और 200 ग्राम पोटैशियम सल्फेट का मिश्रण प्रति एक बेल जनवरी में छंटाई के बाद डालना चाहिये।
 
सिंचाई:-
गर्मियों में प्रत्येक सप्ताह और सर्दियों में 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की जाती हैं। फूल व फल लगने के समय सिंचाई जरुर करनी चाहिये। फल के टिकाव के पश्चात सिंचाई करते रहना चाहिये। इसी समय फलों तथा पौधों में वृद्धि होती हैं। पकने के समय हल्की-सी नमी की कमी होनी चाहिये। जाड़ों में अधिक नमी होनी चाहिये। फूल खिलते समय व नवम्बर से जनवरी तक सिंचाई नहीं करनी चाहिये।
 
कीट:-
चैफर बोटल:- यह कीट अंगूर से पत्तियों की छांटकर छलनी कर देता हैं। बाली वाली सूंडीयां मुख्य रूप से नई बेलों की पत्त्यियों को खाती हैं।
रोकथाम:- इस कीट से बचाव के लिए 10 प्रतिशत बी० एच० सी० धूल, मैलाथियान, डायजिनान, पोलिथियान 0.05 प्रतिशत का छिडकाव एक बार जून के अन्तिम सप्ताह में और जुलाई-सितम्बर तक 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करते रहना चाहिये।
स्फेल कीट:- यह कीट बहुत छोटा, सफ़ेद रंग का पतला कीट होता हैं। यह टहनी, शाखा व तने पर चिपका रहता हैं तथा रस चूसकर बेलों को सूखा देते हैं।
रोकथाम:- इस कीट से बचाव के लिए 10 प्रतिशत बी० एच० सी० धूल, मैलाथियान, डायजिनान, पोलिथियान 0.05 प्रतिशत का छिडकाव एक बार जून के अन्तिम सप्ताह में और जुलाई-सितम्बर तक 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करते रहना चाहिये। 
थ्रिप्स:- यह पीले रंग का कीड़ा होता हैं। यह पत्ती व फूलों के गुच्छों से रस चूसता हैं। जिससे पत्तियाँ किनारे से मुड़ जाती हैं, तथा पीली पड़कर गिर जाती हैं, फूल सूख जाते हैं।
रोकथाम:- इस कीट से बचाव के लिए 10 प्रतिशत बी० एच० सी० धूल, मैलाथियान, डायजिनान, पोलिथियान 0.05 प्रतिशत का छिडकाव एक बार जून के अन्तिम सप्ताह में और जुलाई-सितम्बर तक 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करते रहना चाहिये।
 
रोग:-
सन्थ्रक्नोज एवं सर्कास्वोरा:- यह पत्ती धब्बा रोग हैं। इनके आक्रमण से पत्तियाँ सूखकर गिर जाती हैं तथा टहनियाँ भी पूरी तरह से सूख जाती हैं।
रोकथाम:- इनकी रोकथाम के लिए ब्लाईटॉक्स 0.3 प्रतिशत का छिड़काव एक बार जून के अन्तिम सप्ताह में तथा दूसरा 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।
 
फलों की तुड़ाई:- अंगूर के गुच्छों को तुड़ाई पूर्ण रूप से पकने के बाद की जानी चाहिये। प्रात:काल सावधानीपूर्वक डंठल को पकड़कर तुड़ाई की जाती हैं।
 
ऊपज:-
अंगूर की ऊपज किस्म, संघाई तथा बाग की देखभाल पर निर्भर करती हैं। अंगूर के फल की औसत ऊपज 10-15 टन प्रति एक हेक्टेयर से प्राप्त होती हैं।
 
 
फाइनल 

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