बुधवार, 27 सितंबर 2017

अम्लीय भूमि

परिचय:-
भारत वर्ष में लगभग 490 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि अम्लीय है, जिसमें लगभग 259 लाख हेक्टेयर भूमि का पी.एच. मान 5.5 से भी कम है देश में अम्लीय भूमि अधिकतर उड़ीसा, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैंड, मेधालय, अरुणाचल, सिक्किम, मिजोरम, झारखंड, केरल, कर्नाटक, हिमांचल प्रदेश एवं जम्मू कश्मीर के कुछ भाग में पाई जाती है ।
         झारखंड में लगभग 46 प्रतिशत भूभाग (10 लाख हेक्टेयर) कृषि योग्य भूमि अम्लीय भूमि है, जो मुख्यत: दुमका, जामताड़ा, पूर्वी सिंहभूम, राँची, गुमला एवं गढ़वा जिलों में पायी जाती है अम्लीयता के कारण इसकी उपजाऊ शक्ति में कमी जाती है अम्लीय भूमि में रासायनिक खादों के साथ-साथ चूने का प्रयोग करके अच्छा उत्पादन ले सकते है
भूमि की अम्लीयता का कारण:-
  • मिट्टी की अम्लीयता एक प्राकृतिक गुण है जो कि फसलों की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है
  • अधिक वर्षा के कारण भूमि की ऊपरी सतह से क्षारीय तत्व जैसे कैल्शियम, मैंगनेशियम आदि पानी में बह जाते है, जिसके कारण मृदा पी.एच. मान 6.5 से कम हो जाता है ऐसी भूमि को हम "अम्लीय भूमि" कहते है
  • जंगली क्षेत्रों में पेड़ों से पत्तियाँ गिरने के बाद सड़न प्रक्रिया में कार्बनिक अम्ल निकलता है तथा भूमि में अम्लीय गुण पैदा करता है
  • अम्लीयता के कारण भूमि में हाइड्रोजन एल्यूमीनियम की घुलनशीलता बढ़ जाती है, जो पौधों की सामान्य बढ़ोतरी पर प्रतिकुल प्रभाव डालती है
  • औद्योगिक क्षेत्र में यह अम्लीयता सल्फर, नाइट्रोजन एवं अन्य गैसों के कारण होती है जो वर्षा (एसिड रेन) द्वारा भूमि में प्रवेश होती है ।
अम्लीय भूमि की समस्याएँ:-
  • अम्लीय भूमि में हाइड्रोजन एल्युमिनिय की अधिकता होने से पौधों की जड़ों की सामान्य वृद्धि रुक जाती है, जिसके कारण जड़े, छोटी, मोटी और इकट्ठी रह जाती है ।
  • भूमि में मैंगनीज और आयरन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे पौधे कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो जाते है ।
  • अम्लीयता के कारण फ़ॉस्फोरस मोलिब्डेनम की घुलनशीलता कम हो जाती है, जिसके कारण पौधों में फ़ॉस्फोरस मोलिब्डेनम की कमी हो जाती है ।
  • कैल्शियम, मैंगनेशियम, पोटाश बोरोन की कमी हो जाती है ।
  • पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों में असंतुलन जाता है, जिससे पैदावार कम हो जाती है ।
  • अम्लीयता के कारण सूक्ष्म जीवों की संख्या कार्यकुशलता में कमी जाती है, जिसके कारण नाइट्रोजन की स्थितिकरण कार्बनिक पदार्थो का विघटन कम हो जाता है ।
अम्लीय भूमि का प्रबंधन:-
  • वास्तव में जिस भूमि का पी.एच. 5.5 से कम हो, उस भूमि से अधिक पैदावार लेने के लिए प्रबंधन की आवश्यकता होती है
  • अम्लीय भूमि से अधिक पैदावार लेने के लिए ऐसा पदार्थ डाला जाए जो भूमि की अम्लीयता को उदासीन कर विभिन्न तत्वों की उपलब्धता बढ़ा सके
  • अम्लीय भूमि में चूने का प्रयोग करने से भूमि की अम्लीयता खत्म हो जाती हैं जिससे फसल पैदावार में बढ़ोतरी की जा सकती है
  • बाजारू चूना का पर्याप्त मात्रा में सभी अम्लीय क्षेत्र में उपलब्ध होना, अम्लीय मिट्टी के प्रबंधन में सबसे बड़ा बाधक है
  • अम्लीय क्षेत्रों में बाजारू चूना उपलब्ध होने पर बाजारू चूने के स्थान पर स्लैग, प्रेस मड, पेपर मिल स्लज इत्यादि की दुगुना मात्रा का प्रयोग किया जा सकता है
चूना का मृदा पर प्रभाव:-
      भूमि की रासायनिक, भौतिक एवं जैविक गुणों में सुधार कर कृषि उत्पादन बढ़ाने में सहायता करता है । चूना का मृदा पर प्रभाव निम्न है-

 रासायनिक प्रभाव
  • हाइड्रोजन की मात्रा कम करके मिट्टी का पी.एच. मान बढ़ाता है
  • एल्यूमीनियम, मैंगनीज लोहा की घुलनशीलता को कम करता है
  • फ़ॉस्फोरस मोलिब्डेनम की उपलब्धता में वृद्धि करता है
  • कैल्शियम, मैंग्निशियम और पोटेशियम की मात्रा को बढ़ाता है
भौतिक प्रभाव
  • चूना का प्रयोग भूमि की बनावट को अच्छा करता है
  • जड़ों की वृद्धि में योगदान देता है।
  • जैविक प्रभाव
    • चूना डालने से सभी प्रकार के जीवाणुओं में वृद्धि होती है, जो नाइट्रोजन का स्थितिकरण करते है
    • चूना डालने से हानिकारक कीटाणु समाप्त हो जाते है
    • सूक्ष्म जीवों की कार्य क्षमता में बढ़ोतरी होती हैं, जिससे नाईट्रेट और स्लेट बनने की क्रिया में वृद्धि होती है
    चूना का मृदा पर प्रभाव:-
    • अम्लीय भूमि को अच्छा बनाने के लिये चूना की कितनी मात्रा का प्रयोग किया जाये, यह प्रयोगशाला में मिट्टी परीक्षण द्वारा तय किया जाता है ।
    • चूना की मात्रा का निर्धारण मुख्यत: चूना के रूप में प्रयोग किये जाने वाले पदार्थ के कणों का व्यास, मृदा पी.एच. मान एवं मिट्टी की संरचना पर निर्भर करता है ।
    • साधारणत: अम्लीय भूमि का पी.एच. मान उदासीन स्तर पर पहुँचाने के लिए लगभग 30-40 क्विंटल चूना प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है
    • चूने को बोआई से पहले छिट कर खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए । इसका असर 3-5 साल तक जमीन में रहता है ।
    • जहां चूना की मांग के हिसाब से चूना भूमि में डाला गया हो वहां 3-5 साल तक चूने को दोबारा डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।
    • इस विधि द्वारा चूना डालने से किसानों को एक बार अधिक खर्च करना पड़ता है ।
    • नई खोजों के अनुसार यह पाया गया कि मात्र 3-4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर चूना प्रतिवर्ष बरसात के मौसम में फसल की बोआई के समय नालियों में डालने से पैदावार में वृद्धि की जा सकती है
    • चूना कम घुलनशील होता है, इसलिए बारीक पाउडर के रूप में कतार में डालकर फसलों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है चूना प्रयोग की यह विधि कम खर्चीली है, इसे हर साल डालना होता है, जब तक भूमि का पी.एच. मान 6.0 तक पहुंच जाए
    चूना का फसलों की पैदावार पर असर:-  सभी फसलों पर मृदा अम्लता का हानिकारक प्रभाव समान रूप से नहीं पड़ता है । कुछ फसलें अम्लीय मिट्टी में सुचारू रूप से उगाई जा सकती है । फसलों द्वारा मृदा अम्लता का प्रभाव को सहन करने की क्षमता के आधार पर निम्नलिखित वर्गों में बांटा गया है-
    • अधिक अम्लता सहन करने वाली फसलें: धान, आलू, राई, जई, शकरकंद, अंडी तथा मिट्टी में बैठने वाली फसलें ।
    • औसत अम्लता रोधक फसलें: गेहूँ, राई, घास, जौ, शलजम इत्यादि ।
    • अम्लता को कुछ-कुछ सहन करने वाली फसलें: चुकन्दर, गाजर, मटर, सोयाबिन, मक्का, टमाटर, बैगन आदि।
    • अम्लता को सहन करने वाली फसलें: लुर्सन, बरसीम, सेम, खरबूजा, फूलगोभी, पतागोभी, ज्वार, प्याज आदि।
     
    सारणी: रासायनिक उर्वरकों के साथ चूना का प्रयोग से फसलों का उत्पादन पर प्रभाव


    क्र.सं. खादों का प्रयोग
    औसत पैदावार (क्विं./हें.)
       

      मक्का

     अरहर

    मक्का + अरहर

    मटर की हरी छिमी
    1 कंट्रोल (बिना खाद)    17.1   07.4     24.5     28.6
    2 कंट्रोल + चूना    21.5   10.0     31.5     32.5
    3 100% नाइट्रोजन: फास्फोरस: पोटाश    25.1   12.0     37.1     42.6
    4 50% नाइट्रोजन: फास्फोरस: पोटाश + चूना    29.6   15.2     44.8     51.2
    5 50% नाइट्रोजन: फास्फोरस: पोटाश + चूना    28.0   12.4     40.4     50.8
    6 50% नाइट्रोजन: फास्फोरस: पोटाश + कम्पोस्ट + चूना    31.4   17.0     48.4     69.8

        सारणी 1 में पता चलता है कि खादों के प्रयोग के बिना मक्का अरहर की मिश्रित खेती में मक्का का उत्पादन 17.1 अरहर का उत्पादन 7.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हुआ है। केवल चूना (4 क्विं./हें.) का प्रयोग से मक्का अरहर की उपज में क्रमश: 21.5 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि हुई है। लेकिन जहां रासायनिक खादों के संतुलित प्रयोग के साथ चूना का प्रयोग भी किया गया तो मक्का अरहर का क्रमश: 29.6 15.2 क्विं./हें. उपज किसानों को मिला है ।भूमि

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