परिचय:-
भारत वर्ष में लगभग 490 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि अम्लीय है, जिसमें लगभग 259 लाख हेक्टेयर भूमि का पी.एच. मान 5.5 से भी कम है । देश में अम्लीय भूमि अधिकतर उड़ीसा, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैंड, मेधालय, अरुणाचल, सिक्किम, मिजोरम, झारखंड, केरल, कर्नाटक, हिमांचल प्रदेश एवं जम्मू कश्मीर के कुछ भाग में पाई जाती है ।
झारखंड में लगभग 46 प्रतिशत भूभाग (10 लाख हेक्टेयर) कृषि योग्य भूमि अम्लीय भूमि है, जो मुख्यत: दुमका, जामताड़ा, पूर्वी सिंहभूम, राँची, गुमला एवं गढ़वा जिलों में पायी जाती है । अम्लीयता के कारण इसकी उपजाऊ शक्ति में कमी आ जाती है । अम्लीय भूमि में रासायनिक खादों के साथ-साथ चूने का प्रयोग करके अच्छा उत्पादन ले सकते है ।
भूमि की अम्लीयता का कारण:-
भूमि की रासायनिक, भौतिक एवं जैविक गुणों में सुधार कर कृषि उत्पादन बढ़ाने में सहायता करता है । चूना का मृदा पर प्रभाव निम्न है-
भारत वर्ष में लगभग 490 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि अम्लीय है, जिसमें लगभग 259 लाख हेक्टेयर भूमि का पी.एच. मान 5.5 से भी कम है । देश में अम्लीय भूमि अधिकतर उड़ीसा, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैंड, मेधालय, अरुणाचल, सिक्किम, मिजोरम, झारखंड, केरल, कर्नाटक, हिमांचल प्रदेश एवं जम्मू कश्मीर के कुछ भाग में पाई जाती है ।
झारखंड में लगभग 46 प्रतिशत भूभाग (10 लाख हेक्टेयर) कृषि योग्य भूमि अम्लीय भूमि है, जो मुख्यत: दुमका, जामताड़ा, पूर्वी सिंहभूम, राँची, गुमला एवं गढ़वा जिलों में पायी जाती है । अम्लीयता के कारण इसकी उपजाऊ शक्ति में कमी आ जाती है । अम्लीय भूमि में रासायनिक खादों के साथ-साथ चूने का प्रयोग करके अच्छा उत्पादन ले सकते है ।
भूमि की अम्लीयता का कारण:-
- मिट्टी की अम्लीयता एक प्राकृतिक गुण है । जो कि फसलों की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है ।
- अधिक वर्षा के कारण भूमि की ऊपरी सतह से क्षारीय तत्व जैसे – कैल्शियम, मैंगनेशियम आदि पानी में बह जाते है, जिसके कारण मृदा पी.एच. मान 6.5 से कम हो जाता है । ऐसी भूमि को हम "अम्लीय भूमि" कहते है ।
- जंगली क्षेत्रों में पेड़ों से पत्तियाँ गिरने के बाद सड़न प्रक्रिया में कार्बनिक अम्ल निकलता है तथा भूमि में अम्लीय गुण पैदा करता है ।
- अम्लीयता के कारण भूमि में हाइड्रोजन व एल्यूमीनियम की घुलनशीलता बढ़ जाती है, जो पौधों की सामान्य बढ़ोतरी पर प्रतिकुल प्रभाव डालती है ।
- औद्योगिक क्षेत्र में यह अम्लीयता सल्फर, नाइट्रोजन एवं अन्य गैसों के कारण होती है जो वर्षा (एसिड रेन) द्वारा भूमि में प्रवेश होती है ।
- अम्लीय भूमि में हाइड्रोजन व एल्युमिनिय की अधिकता होने से पौधों की जड़ों की सामान्य वृद्धि रुक जाती है, जिसके कारण जड़े, छोटी, मोटी और इकट्ठी रह जाती है ।
- भूमि में मैंगनीज और आयरन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे पौधे कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो जाते है ।
- अम्लीयता के कारण फ़ॉस्फोरस व मोलिब्डेनम की घुलनशीलता कम हो जाती है, जिसके कारण पौधों में फ़ॉस्फोरस व मोलिब्डेनम की कमी हो जाती है ।
- कैल्शियम, मैंगनेशियम, पोटाश व बोरोन की कमी हो जाती है ।
- पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों में असंतुलन आ जाता है, जिससे पैदावार कम हो जाती है ।
- अम्लीयता के कारण सूक्ष्म जीवों की संख्या व कार्यकुशलता में कमी आ जाती है, जिसके कारण नाइट्रोजन की स्थितिकरण व कार्बनिक पदार्थो का विघटन कम हो जाता है ।
- वास्तव में जिस भूमि का पी.एच. 5.5 से कम हो, उस भूमि से अधिक पैदावार लेने के लिए प्रबंधन की आवश्यकता होती है ।
- अम्लीय भूमि से अधिक पैदावार लेने के लिए ऐसा पदार्थ डाला जाए जो भूमि की अम्लीयता को उदासीन कर विभिन्न तत्वों की उपलब्धता बढ़ा सके ।
- अम्लीय भूमि में चूने का प्रयोग करने से भूमि की अम्लीयता खत्म हो जाती हैं । जिससे फसल पैदावार में बढ़ोतरी की जा सकती है ।
- बाजारू चूना का पर्याप्त मात्रा में सभी अम्लीय क्षेत्र में उपलब्ध न होना, अम्लीय मिट्टी के प्रबंधन में सबसे बड़ा बाधक है ।
- अम्लीय क्षेत्रों में बाजारू चूना उपलब्ध न होने पर बाजारू चूने के स्थान पर स्लैग, प्रेस मड, पेपर मिल स्लज इत्यादि की दुगुना मात्रा का प्रयोग किया जा सकता है ।
भूमि की रासायनिक, भौतिक एवं जैविक गुणों में सुधार कर कृषि उत्पादन बढ़ाने में सहायता करता है । चूना का मृदा पर प्रभाव निम्न है-
रासायनिक प्रभाव
- हाइड्रोजन की मात्रा कम करके मिट्टी का पी.एच. मान बढ़ाता है ।
- एल्यूमीनियम, मैंगनीज व लोहा की घुलनशीलता को कम करता है ।
- फ़ॉस्फोरस व मोलिब्डेनम की उपलब्धता में वृद्धि करता है ।
- कैल्शियम, मैंग्निशियम और पोटेशियम की मात्रा को बढ़ाता है ।
- चूना डालने से सभी प्रकार के जीवाणुओं में वृद्धि होती है, जो नाइट्रोजन का स्थितिकरण करते है ।
- चूना डालने से हानिकारक कीटाणु समाप्त हो जाते है ।
- सूक्ष्म जीवों की कार्य क्षमता में बढ़ोतरी होती हैं, जिससे नाईट्रेट और स्लेट बनने की क्रिया में वृद्धि होती है ।
- अम्लीय भूमि को अच्छा बनाने के लिये चूना की कितनी मात्रा का प्रयोग किया जाये, यह प्रयोगशाला में मिट्टी परीक्षण द्वारा तय किया जाता है ।
- चूना की मात्रा का निर्धारण मुख्यत: चूना के रूप में प्रयोग किये जाने वाले पदार्थ के कणों का व्यास, मृदा पी.एच. मान एवं मिट्टी की संरचना पर निर्भर करता है ।
- साधारणत: अम्लीय भूमि का पी.एच. मान उदासीन स्तर पर पहुँचाने के लिए लगभग 30-40 क्विंटल चूना प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है
- चूने को बोआई से पहले छिट कर खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए । इसका असर 3-5 साल तक जमीन में रहता है ।
- जहां चूना की मांग के हिसाब से चूना भूमि में डाला गया हो वहां 3-5 साल तक चूने को दोबारा डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।
- इस विधि द्वारा चूना डालने से किसानों को एक बार अधिक खर्च करना पड़ता है ।
- नई खोजों के अनुसार यह पाया गया कि मात्र 3-4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर चूना प्रतिवर्ष बरसात के मौसम में फसल की बोआई के समय नालियों में डालने से पैदावार में वृद्धि की जा सकती है ।
- चूना कम घुलनशील होता है, इसलिए बारीक पाउडर के रूप में कतार में डालकर फसलों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है । चूना प्रयोग की यह विधि कम खर्चीली है, इसे हर साल डालना होता है, जब तक भूमि का पी.एच. मान 6.0 तक न पहुंच जाए ।
- अधिक अम्लता सहन करने वाली फसलें: धान, आलू, राई, जई, शकरकंद, अंडी तथा मिट्टी में बैठने वाली फसलें ।
- औसत अम्लता रोधक फसलें: गेहूँ, राई, घास, जौ, शलजम इत्यादि ।
- अम्लता को कुछ-कुछ सहन करने वाली फसलें: चुकन्दर, गाजर, मटर, सोयाबिन, मक्का, टमाटर, बैगन आदि।
- अम्लता को सहन न करने वाली फसलें: लुर्सन, बरसीम, सेम, खरबूजा, फूलगोभी, पतागोभी, ज्वार, प्याज आदि।
सारणी:– रासायनिक उर्वरकों के साथ चूना का प्रयोग से फसलों का उत्पादन पर प्रभाव
क्र.सं. | खादों का प्रयोग |
औसत पैदावार (क्विं./हें.)
| |||
मक्का
|
अरहर
|
मक्का + अरहर
|
मटर की हरी छिमी
| ||
1 | कंट्रोल (बिना खाद) | 17.1 | 07.4 | 24.5 | 28.6 |
2 | कंट्रोल + चूना | 21.5 | 10.0 | 31.5 | 32.5 |
3 | 100% नाइट्रोजन: फास्फोरस: पोटाश | 25.1 | 12.0 | 37.1 | 42.6 |
4 | 50% नाइट्रोजन: फास्फोरस: पोटाश + चूना | 29.6 | 15.2 | 44.8 | 51.2 |
5 | 50% नाइट्रोजन: फास्फोरस: पोटाश + चूना | 28.0 | 12.4 | 40.4 | 50.8 |
6 | 50% नाइट्रोजन: फास्फोरस: पोटाश + कम्पोस्ट + चूना | 31.4 | 17.0 | 48.4 | 69.8 |
सारणी 1 में पता चलता है कि खादों के प्रयोग के बिना मक्का अरहर की मिश्रित खेती में मक्का का उत्पादन 17.1 व अरहर का उत्पादन 7.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हुआ है। केवल चूना (4 क्विं./हें.) का प्रयोग से मक्का व अरहर की उपज में क्रमश: 21.5 व 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि हुई है। लेकिन जहां रासायनिक खादों के संतुलित प्रयोग के साथ चूना का प्रयोग भी किया गया तो मक्का व अरहर का क्रमश: 29.6 व 15.2 क्विं./हें. उपज किसानों को मिला है ।भूमि
Thanks
जवाब देंहटाएंGood information
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंThanks🙏🌹❤
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